महाकाल : सावन-भादो की अंतिम राजसी सवारी, हेलीकॉप्टर से हुई पुष्पवर्षा
उज्जैन में भगवान महाकाल की 6ठवीं और आखिरी सवारी राजसी ठाठ-बाट के साथ निकाली गई। भगवान महाकाल इस बार 6 स्वरूपों (मुखारविंद) में अपनी प्रजा का हाल जानने निकले। रजत पालकी पर श्री चंद्रमोलेश्वर, हाथी पर श्री मनमहेश, गरूड़ रथ पर श्री शिवतांडव, नंदी रथ पर श्री उमा-महेश, डोल रथ पर होल्कर स्टेट का मुखारबिंद और सप्तधान मुखारबिंद के दर्शन हुए । इस दौरान हेलीकॉप्टर से श्रद्धालुओं पर पुष्पवर्षा भी की गई । इसी के साथ सावन-भादो मास में निकलने वाली सवारियों का भी समापन हो गया।
महाकाल की सवारी के इस आयोजन में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भी शामिल हुए। मुख्यमंत्री डॉ. यादव खुद भी डमरू और झांझ बजाकर भगवान की भक्ति में लीन नजर आए। सवारी निकलने से पहले उन्होंने श्री महाकालेश्वर मंदिर के सभामंडप में भगवान श्री चंद्रमौलेश्वर का विधि-विधान से पूजन और आरती किया। इस बार की यात्रा में कुल 70 भजन मंडलियां, साधु-संत, पुरोहित, लोकनृत्य कलाकार, पुलिस बैंड और नगर सेना के साथ करीब 10 लाख भक्त शामिल हुए । इस दौरान सुरक्षा के कड़े इंतजाम थे । सशस्त्र पुलिस बल और विभिन्न बटालियनों के जवानों ने सवारी को सलामी दी। पुलिस-प्रशासन ने विशेष व्यवस्थाएं की थीं जिसके तहत मोबाइल डिटेक्शन टीम की तैनाती के साथ ही सेल्फी पर रोक भी लगाई गई थी।
एक और परंपरा के अनुसार सिंधिया घराने का कोई न कोई सदस्य महाकाल की सवारी के अनुष्ठान में हर वर्ष जरूर शामिल होता है और इस बार स्वयं केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया शामिल हुए। 250 साल पहले सिंधिया घराने के राणोंजी सिंधिया ने महाकालेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था, जिसके बाद भगवान महाकाल की सवारी का क्रम फिर से शुरू हुआ था। रामघाट पर क्षिप्रा तट पर पूजन-अर्चन और आरती के बाद रात 10 बजे पूरा आयोजन महाकाल मंदिर में संपन्न हुआ।