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शुक्रवार व्रत: सन्तोषी माता एवं वैभव लक्ष्मी माता का पावन उपवास

 

सनातन धर्म में स्त्री को शक्ति, सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना गया है, और देवी आराधना के माध्यम से यही दिव्य ऊर्जा घर और परिवार में स्थिर होती है। शुक्रवार का दिन विशेष रूप से उन देवियों की उपासना के लिए माना गया है जो जीवन में शांति, संतोष और वैभव प्रदान करती हैं। इसलिए माँ सन्तोषी का व्रत और देवी वैभव लक्ष्मी का व्रत, दोनों ही शुक्रवार को रखे जाने वाले अत्यन्त महत्वपूर्ण उपवास हैं। ये व्रत केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि संतोष, अनुशासन, संयम और श्रद्धा के माध्यम से देवी की कृपा प्राप्त करने का सरल और फलदायी साधन माने जाते हैं। भारत में व्रत-उपवास केवल धार्मिक नियम नहीं, बल्कि मन, शरीर और जीवन को अनुशासन में लाने का एक पवित्र मार्ग माने जाते हैं।

 

व्रत का महत्व

 

वैभव लक्ष्मी व्रत का महत्व

यह व्रत देवी लक्ष्मी के वैभवशाली रूप को समर्पित है। भक्त मानते हैं कि इस व्रत से घर में धन-सम्पत्ति, सुख-समृद्धि और सौभाग्य का वास होता है। गृहस्थ जीवन में संतुलन, शान्ति और आर्थिक उन्नति के लिये यह व्रत बड़ा प्रभावी माना गया है। यह 7,11, 21,51 या 101 शुक्रवार तक किया जाता है।

 

सन्तोषी माता व्रत का महत्व

सन्तोष, शान्ति और सौभाग्य की देवी सन्तोषी माता का व्रत अत्यन्त प्रचलित है। माना जाता है कि यह व्रत करने से घर में शान्ति, संतोष, पारिवारिक सुख एवं आर्थिक स्थिरता आती है। विशेष रूप से उत्तर भारत में यह व्रत 16 शुक्रवार तक किया जाता है। यह व्रत स्त्रियों के लिये अत्यन्त शुभ माना गया है।

 

व्रत की विधि

 

वैभव लक्ष्मी माता व्रत विधि

गोधूलि बेला में भी स्नान करके साफ और पवित्र वस्त्र पहनें। इसके बाद 7, 11, 21, 51 या 101 शुक्रवारों के वैभव लक्ष्मी व्रत का संकल्प लें पूजा स्थान को पहले गंगाजल या गोबर से पवित्र करें। फिर वहाँ लाल वस्त्र बिछाकर देवी वैभव लक्ष्मी की प्रतिमा, चित्र और श्री-यंत्र स्थापित करें। यदि संभव हो तो सोने-चाँदी कोइ भी वस्तु, और यदि ये भी संभव न हों तो एक का सिक्का पूजन में रखें। अब गंध, पुष्प में विशेष रुप से गुलाब का फूल अनिवार्य होता है, दीप, फल और नैवेद्य अर्पित करें तथा “ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः” मंत्र का जाप करें। इसके बाद वैभव लक्ष्मी व्रत कथा का पाठ करें और माँ की आरती उतारें। इस व्रत की सबसे विशेष बात यह है कि प्रसाद या भोजन सिर्फ अपनी नेक कमाई का ही होना चाहिए। किसी और के पैसों से लिया या बनाया भोजन इस व्रत में मान्य नहीं माना जाता। यदि किसी कारण वश कोई शुक्रवार व्रत न हो पाए, तो इसे बीच में छोड़ा जा सकता है और बाद में छोड़ी गयी उसी संख्या से आगे व्रत को जारी रख सकते हैं .

 

सन्तोषी माता व्रत विधि

सुबह जल्दी उठकर स्नान करें, फिर साफ और पवित्र वस्त्र धारण करें। इसके बाद मन में माता का ध्यान करके 7, 11, 16 या 21 शुक्रवार तक व्रत करने का संकल्प लें। पूजन के लिए एक कलश में जल भरें और उसके ऊपर गुड़ और चने रख दें। फिर फूल, धूप, दीप, गंध और खीर और केला अर्पित करके माता सन्तोषी का विधि-विधान से पूजन करें। अब गुड़-चना हाथ में लेकर सन्तोषी माता की कथा सुनें। कथा के बाद यह गुड़-चना गौ माता को खिला दें। अंत में माता की आरती करें, जल का छींटा लगाएँ और स्वयम ही प्रसाद ग्रहण करें। ध्यान रखने की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस व्रत का प्रसाद खाने वाला कोई भी व्यक्ति खट्टी चीज़ों का सेवन नहीं करेगा, यहाँ तक कि फल में भी केवल केला ही खाया जा सकता है। शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को हर परिस्थिति में निभाना आवश्यक माना गया है, यदी किसी कारण वश पूजा न भी कर पाएँ फिर भी व्रत रखना अनिवार्य है।

 

आहार नियम

 

वैभव लक्ष्मी व्रत आहार नियम

यदि संभव हो तो एक समय अन्न ग्रहण करें अन्यथा फलाहार करें। फल, दूध, सूखे मेवे, साबूदाना, शकरकंद आदि उपवास योग्य पदार्थ लें।

 

सन्तोषी माता व्रत आहार नियम

खटाई वर्जित है जैसे - नींबू, दही, इमली, टमाटर, आमचूर आदि नहीं खाएँ। एक समय सात्त्विक भोजन करें या केवल गुड़-चने/खीर ग्रहण करें। व्रत में साधारण, हल्का एवं सात्त्विक आहार रखना अत्यन्त जरूरी है।

 

व्रत उद्यापन

 

वैभव लक्ष्मी व्रत उद्यापन

निर्धारित शुक्रवार पूरे होने पर, सुन्दर मण्डप बनाकर माँ लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें। पाँच प्रकार के फल, पाँच मिष्ठान्न, पञ्चमेवा और लाल वस्त्र अर्पित करें। नारियल फोड़ें और संपूर्ण विधि से पूजन करें। 7, 11 या 21 सुहागिनों या फिर कन्याओं को भोजन कराएँ, उन्हें सिन्दूर, मेहंदी, चूड़ी, बिन्दी और दक्षिणा देकर विदा करें। माँ लक्ष्मी को धन्यवाद कहकर व्रत पूर्ण करें।

 

सन्तोषी माता व्रत उद्यापन

16 शुक्रवार पूर्ण होने पर, शाम के समय, ढाई सेर खाजा, खीर, पकवान आदि अर्पित करें। नारियल फोड़कर विशेष पूजन करें। कथा सुनकर 8 बालकों को प्रसाद बाँटे और उन्हें फल में सिर्फ केला ही दें और ध्यान रखें कि प्रसाद ग्रहण करने के बाद खटाई न खाएँ।

 

सनातन धर्म में कहा गया है कि “व्रत शरीर को नहीं, आत्मा को शुद्ध करता है।” जब भक्त श्रद्धा, विश्वास और शुद्ध नीयत से व्रत करता है, तो देवियों की कृपा अवश्य प्राप्त होती है, और जीवन में सुख, शान्ति, समृद्धि तथा संतोष का वास होता है।

 

: - वर्तिका श्रीवास्तव

 

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शुक्रवार व्रत: सन्तोषी माता एवं वैभव लक्ष्मी माता का पावन उपवास

 

सनातन धर्म में स्त्री को शक्ति, सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना गया है, और देवी आराधना के माध्यम से यही दिव्य ऊर्जा घर और परिवार में स्थिर होती है। शुक्रवार का दिन विशेष रूप से उन देवियों की उपासना के लिए माना गया है जो जीवन में शांति, संतोष और वैभव प्रदान करती हैं। इसलिए माँ सन्तोषी का व्रत और देवी वैभव लक्ष्मी का व्रत, दोनों ही शुक्रवार को रखे जाने वाले अत्यन्त महत्वपूर्ण उपवास हैं। ये व्रत केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि संतोष, अनुशासन, संयम और श्रद्धा के माध्यम से देवी की कृपा प्राप्त करने का सरल और फलदायी साधन माने जाते हैं। भारत में व्रत-उपवास केवल धार्मिक नियम नहीं, बल्कि मन, शरीर और जीवन को अनुशासन में लाने का एक पवित्र मार्ग माने जाते हैं।

 

व्रत का महत्व

 

वैभव लक्ष्मी व्रत का महत्व

यह व्रत देवी लक्ष्मी के वैभवशाली रूप को समर्पित है। भक्त मानते हैं कि इस व्रत से घर में धन-सम्पत्ति, सुख-समृद्धि और सौभाग्य का वास होता है। गृहस्थ जीवन में संतुलन, शान्ति और आर्थिक उन्नति के लिये यह व्रत बड़ा प्रभावी माना गया है। यह 7,11, 21,51 या 101 शुक्रवार तक किया जाता है।

 

सन्तोषी माता व्रत का महत्व

सन्तोष, शान्ति और सौभाग्य की देवी सन्तोषी माता का व्रत अत्यन्त प्रचलित है। माना जाता है कि यह व्रत करने से घर में शान्ति, संतोष, पारिवारिक सुख एवं आर्थिक स्थिरता आती है। विशेष रूप से उत्तर भारत में यह व्रत 16 शुक्रवार तक किया जाता है। यह व्रत स्त्रियों के लिये अत्यन्त शुभ माना गया है।

 

व्रत की विधि

 

वैभव लक्ष्मी माता व्रत विधि

गोधूलि बेला में भी स्नान करके साफ और पवित्र वस्त्र पहनें। इसके बाद 7, 11, 21, 51 या 101 शुक्रवारों के वैभव लक्ष्मी व्रत का संकल्प लें पूजा स्थान को पहले गंगाजल या गोबर से पवित्र करें। फिर वहाँ लाल वस्त्र बिछाकर देवी वैभव लक्ष्मी की प्रतिमा, चित्र और श्री-यंत्र स्थापित करें। यदि संभव हो तो सोने-चाँदी कोइ भी वस्तु, और यदि ये भी संभव न हों तो एक का सिक्का पूजन में रखें। अब गंध, पुष्प में विशेष रुप से गुलाब का फूल अनिवार्य होता है, दीप, फल और नैवेद्य अर्पित करें तथा “ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः” मंत्र का जाप करें। इसके बाद वैभव लक्ष्मी व्रत कथा का पाठ करें और माँ की आरती उतारें। इस व्रत की सबसे विशेष बात यह है कि प्रसाद या भोजन सिर्फ अपनी नेक कमाई का ही होना चाहिए। किसी और के पैसों से लिया या बनाया भोजन इस व्रत में मान्य नहीं माना जाता। यदि किसी कारण वश कोई शुक्रवार व्रत न हो पाए, तो इसे बीच में छोड़ा जा सकता है और बाद में छोड़ी गयी उसी संख्या से आगे व्रत को जारी रख सकते हैं .

 

सन्तोषी माता व्रत विधि

सुबह जल्दी उठकर स्नान करें, फिर साफ और पवित्र वस्त्र धारण करें। इसके बाद मन में माता का ध्यान करके 7, 11, 16 या 21 शुक्रवार तक व्रत करने का संकल्प लें। पूजन के लिए एक कलश में जल भरें और उसके ऊपर गुड़ और चने रख दें। फिर फूल, धूप, दीप, गंध और खीर और केला अर्पित करके माता सन्तोषी का विधि-विधान से पूजन करें। अब गुड़-चना हाथ में लेकर सन्तोषी माता की कथा सुनें। कथा के बाद यह गुड़-चना गौ माता को खिला दें। अंत में माता की आरती करें, जल का छींटा लगाएँ और स्वयम ही प्रसाद ग्रहण करें। ध्यान रखने की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस व्रत का प्रसाद खाने वाला कोई भी व्यक्ति खट्टी चीज़ों का सेवन नहीं करेगा, यहाँ तक कि फल में भी केवल केला ही खाया जा सकता है। शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को हर परिस्थिति में निभाना आवश्यक माना गया है, यदी किसी कारण वश पूजा न भी कर पाएँ फिर भी व्रत रखना अनिवार्य है।

 

आहार नियम

 

वैभव लक्ष्मी व्रत आहार नियम

यदि संभव हो तो एक समय अन्न ग्रहण करें अन्यथा फलाहार करें। फल, दूध, सूखे मेवे, साबूदाना, शकरकंद आदि उपवास योग्य पदार्थ लें।

 

सन्तोषी माता व्रत आहार नियम

खटाई वर्जित है जैसे - नींबू, दही, इमली, टमाटर, आमचूर आदि नहीं खाएँ। एक समय सात्त्विक भोजन करें या केवल गुड़-चने/खीर ग्रहण करें। व्रत में साधारण, हल्का एवं सात्त्विक आहार रखना अत्यन्त जरूरी है।

 

व्रत उद्यापन

 

वैभव लक्ष्मी व्रत उद्यापन

निर्धारित शुक्रवार पूरे होने पर, सुन्दर मण्डप बनाकर माँ लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें। पाँच प्रकार के फल, पाँच मिष्ठान्न, पञ्चमेवा और लाल वस्त्र अर्पित करें। नारियल फोड़ें और संपूर्ण विधि से पूजन करें। 7, 11 या 21 सुहागिनों या फिर कन्याओं को भोजन कराएँ, उन्हें सिन्दूर, मेहंदी, चूड़ी, बिन्दी और दक्षिणा देकर विदा करें। माँ लक्ष्मी को धन्यवाद कहकर व्रत पूर्ण करें।

 

सन्तोषी माता व्रत उद्यापन

16 शुक्रवार पूर्ण होने पर, शाम के समय, ढाई सेर खाजा, खीर, पकवान आदि अर्पित करें। नारियल फोड़कर विशेष पूजन करें। कथा सुनकर 8 बालकों को प्रसाद बाँटे और उन्हें फल में सिर्फ केला ही दें और ध्यान रखें कि प्रसाद ग्रहण करने के बाद खटाई न खाएँ।

 

सनातन धर्म में कहा गया है कि “व्रत शरीर को नहीं, आत्मा को शुद्ध करता है।” जब भक्त श्रद्धा, विश्वास और शुद्ध नीयत से व्रत करता है, तो देवियों की कृपा अवश्य प्राप्त होती है, और जीवन में सुख, शान्ति, समृद्धि तथा संतोष का वास होता है।

 

: - वर्तिका श्रीवास्तव