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श्री रामचरितमानस कैसे पढ़ें ?

 

श्री रामचरितमानस भारतीय संस्कृति में एक विशेष स्थान रखता है। सभी हिन्दू धर्मावलम्बियों के लिए श्री रामचरितमानस सबसे पवित्र धर्म ग्रन्थ है। ऐसे गोस्वामी तुलसीदास जी ने अवधी भाषा में लिखा था। इस ग्रन्थ को हिंदी साहित्य की एक महान कृति माना जाता है। श्री रामचरित मानस के नायक श्रीराम हैं जिनको एक मर्यादा पुरोषोत्तम के रूप में दर्शाया गया है जोकि अखिल ब्रह्माण्ड के स्वामी श्रीहरि नारायण भगवान के अवतार है जबकि महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण में श्री राम को एक आदर्श चरित्र मानव के रूप में दिखाया गया है। जो सम्पूर्ण मानव समाज ये सिखाता है जीवन को किस प्रकार जिया जाय भले ही उसमे कितने भी विघ्न हों। तुलसी के प्रभु राम सर्वशक्तिमान होते हुए भी मर्यादा पुरुषोत्तम हैं।

 

मानस पाठ की विधि :

पूरी पवित्रता पूर्वक चौकी या आसन पर मंडपनुमा रूप में रामदरबार सजाएं। भगवान राम की प्रतिमा या चित्र रखें।हिंदू परंपरा के अनुसार, किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने या विघ्नों को दूर करने से पहले भगवान गणेश की पूजा करना अनिवार्य है। इसलिए, इस पवित्र यात्रा की शुरुआत भगवान गणेश की दिव्य उपस्थिति का आह्वान करके करें, उसके बाद ज्ञान और वाक्पटुता की देवी देवी सरस्वती की वंदना करें। इसके साथ ही शिव-पार्वती, हनुमान जी, ऋषि वाल्मीकि एवं गोस्वामी तुलसीदास के प्रति श्रद्धा व्यक्त करें। मन में रामदरबार का ध्यान करें जिसमें चारों भाई और प्रभु के चरणों में हनुमतलाल विराजमान हैं। उसके बाद ही आपको अपना पाठ शुरू करना चाहिए। आप चाहें तो पाठ शुरू करने से पहले किसी विद्वान पुजारी से संक्षिप्त संकल्प पूजा या प्रार्थना करवा सकते हैं। षोडशोपचार विधि से पूजन (आवाहन, आसन, अर्धपाद्य, आचमन, मधुपर्क, स्नान, वस्त्राभरण, यज्ञोपवीत, गंधन (चंदन), पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ताबूल, स्तुति और बंदना) करते हुए उनका ध्यान करें। ऐसी मान्यता है कि जहां-जहां रामकथा होती है, हनुमान जी पहुंच ही जाते हैं। अंत में रामायण जी की आरती अवश्य करें।

 

श्री रामचरितमानस की यात्रा बाल कांड से शुरू होती है। लेकिन पाठ कितने दिन में पूर्ण करना है इसकी कोई कठोर नियम-पद्धति नहीं है। जो लोग घर में अखंड रामायण स्थापित करते हैं उसमें एक बार शुरू करने के बाद अंत तक पढ़ते चले जाते हैं। यदि रोज पढ़ना है तो सुविधानुसार थोड़ा-थोड़ा पाठ करके विश्राम करते रहें। यहाँ तक कि अटूट विश्वास, प्रेम और श्रद्धा से ओतप्रोत श्री रामचरितमानस के एक या दो चौपाइयों का प्रतिदिन मनन भी गहन आशीर्वाद प्रदान कर सकता है। मानस के अध्यायों में शामिल हैं -

 

बालकाण्ड: इसमें बालक श्रीराम के जन्म, बाल्यावस्था की रोमांचक कहानियाँ और बाल लीलाएं हैं।

अयोध्याकाण्ड: इसमें श्रीराम के अयोध्या प्रवास, सीता स्वयंवर और राम-सीता की विवाह की कहानी है।

अरण्यकाण्ड: इसमें राम-सीता-लक्ष्मण का वनवास, सुर्पणखा का परिचय, और सीता हरण की घटना है।

किष्किंधाकाण्ड: इसमें हनुमान जी का लंका पहुंचना, रावण-राजा की हरण योजना और सुग्रीव से मिलन की कहानी है।

सुंदरकाण्ड: इसमें हनुमान जी का लंका में चलना, सीता माता से मिलन, और लंका दहन की घटना है।

युद्धकाण्ड: इसमें श्रीराम-रावण संग्राम, रावण वध, और सीता माता का अग्निपरीक्षण है।

उत्तरकाण्ड: इसमें श्रीराम का अयोध्या लौटना, रामराज्य की स्थापना, और भक्त धर्म की महिमा का वर्णन है।

 

मूल रामायण वाल्मीकि जी द्वारा, संस्कृत में रचा गया था । गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा इसे प्रचलित अवधि भाषा (बोली) में लिखा गया था । तुलसीदास जी द्वारा लिखे जाने के कारन ही इसे ‘तुलसी रामायण’ या ‘तुलसीकृत रामायण’ भी कहा जाता है। वाल्मीकि रामायण और श्री राम चरित मानस में कुछ अंतर भी है । प्रचलित अवधी में रचे जाने के कारण रामचरितमानस की लोकप्रियता अद्वितीय है। उत्तर भारत में ‘रामायण’ के रूप में बहुत से लोगों द्वारा प्रतिदिन पढ़ा जाता है। शरद नवरात्रि में इसके सुन्दर काण्ड का पाठ पूरे नौ दिन किया जाता है।

 

एक उत्कृष्ट महाकाव्य : 

तुलसीदास कृत रामचरितमानस में ‘राम’ शब्द 1443 बार और ‘ सीता’ शब्द 147 बार आया है । इसमें चौपाई – 9388, दोहा – 1172, सोरठा –87, श्लोक – 47 और छन्द – 208 हैं जिनका कुल योग 10902 है । इसमें इस प्रकार 'काव्य' की दृष्टि से भी 'रामचरितमानस' एक अति उत्कृष्ट महाकाव्य है। भारतीय साहित्य-शास्त्र में 'महाकाव्य' के जितने लक्षण दिये गये हैं, वह सभी इसमें पूर्ण रूप से पाये जाते हैं।

 

:- रजत द्विवेदी

 

 

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श्री रामचरितमानस कैसे पढ़ें ?

 

श्री रामचरितमानस भारतीय संस्कृति में एक विशेष स्थान रखता है। सभी हिन्दू धर्मावलम्बियों के लिए श्री रामचरितमानस सबसे पवित्र धर्म ग्रन्थ है। ऐसे गोस्वामी तुलसीदास जी ने अवधी भाषा में लिखा था। इस ग्रन्थ को हिंदी साहित्य की एक महान कृति माना जाता है। श्री रामचरित मानस के नायक श्रीराम हैं जिनको एक मर्यादा पुरोषोत्तम के रूप में दर्शाया गया है जोकि अखिल ब्रह्माण्ड के स्वामी श्रीहरि नारायण भगवान के अवतार है जबकि महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण में श्री राम को एक आदर्श चरित्र मानव के रूप में दिखाया गया है। जो सम्पूर्ण मानव समाज ये सिखाता है जीवन को किस प्रकार जिया जाय भले ही उसमे कितने भी विघ्न हों। तुलसी के प्रभु राम सर्वशक्तिमान होते हुए भी मर्यादा पुरुषोत्तम हैं।

 

मानस पाठ की विधि :

पूरी पवित्रता पूर्वक चौकी या आसन पर मंडपनुमा रूप में रामदरबार सजाएं। भगवान राम की प्रतिमा या चित्र रखें।हिंदू परंपरा के अनुसार, किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने या विघ्नों को दूर करने से पहले भगवान गणेश की पूजा करना अनिवार्य है। इसलिए, इस पवित्र यात्रा की शुरुआत भगवान गणेश की दिव्य उपस्थिति का आह्वान करके करें, उसके बाद ज्ञान और वाक्पटुता की देवी देवी सरस्वती की वंदना करें। इसके साथ ही शिव-पार्वती, हनुमान जी, ऋषि वाल्मीकि एवं गोस्वामी तुलसीदास के प्रति श्रद्धा व्यक्त करें। मन में रामदरबार का ध्यान करें जिसमें चारों भाई और प्रभु के चरणों में हनुमतलाल विराजमान हैं। उसके बाद ही आपको अपना पाठ शुरू करना चाहिए। आप चाहें तो पाठ शुरू करने से पहले किसी विद्वान पुजारी से संक्षिप्त संकल्प पूजा या प्रार्थना करवा सकते हैं। षोडशोपचार विधि से पूजन (आवाहन, आसन, अर्धपाद्य, आचमन, मधुपर्क, स्नान, वस्त्राभरण, यज्ञोपवीत, गंधन (चंदन), पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ताबूल, स्तुति और बंदना) करते हुए उनका ध्यान करें। ऐसी मान्यता है कि जहां-जहां रामकथा होती है, हनुमान जी पहुंच ही जाते हैं। अंत में रामायण जी की आरती अवश्य करें।

 

श्री रामचरितमानस की यात्रा बाल कांड से शुरू होती है। लेकिन पाठ कितने दिन में पूर्ण करना है इसकी कोई कठोर नियम-पद्धति नहीं है। जो लोग घर में अखंड रामायण स्थापित करते हैं उसमें एक बार शुरू करने के बाद अंत तक पढ़ते चले जाते हैं। यदि रोज पढ़ना है तो सुविधानुसार थोड़ा-थोड़ा पाठ करके विश्राम करते रहें। यहाँ तक कि अटूट विश्वास, प्रेम और श्रद्धा से ओतप्रोत श्री रामचरितमानस के एक या दो चौपाइयों का प्रतिदिन मनन भी गहन आशीर्वाद प्रदान कर सकता है। मानस के अध्यायों में शामिल हैं -

 

बालकाण्ड: इसमें बालक श्रीराम के जन्म, बाल्यावस्था की रोमांचक कहानियाँ और बाल लीलाएं हैं।

अयोध्याकाण्ड: इसमें श्रीराम के अयोध्या प्रवास, सीता स्वयंवर और राम-सीता की विवाह की कहानी है।

अरण्यकाण्ड: इसमें राम-सीता-लक्ष्मण का वनवास, सुर्पणखा का परिचय, और सीता हरण की घटना है।

किष्किंधाकाण्ड: इसमें हनुमान जी का लंका पहुंचना, रावण-राजा की हरण योजना और सुग्रीव से मिलन की कहानी है।

सुंदरकाण्ड: इसमें हनुमान जी का लंका में चलना, सीता माता से मिलन, और लंका दहन की घटना है।

युद्धकाण्ड: इसमें श्रीराम-रावण संग्राम, रावण वध, और सीता माता का अग्निपरीक्षण है।

उत्तरकाण्ड: इसमें श्रीराम का अयोध्या लौटना, रामराज्य की स्थापना, और भक्त धर्म की महिमा का वर्णन है।

 

मूल रामायण वाल्मीकि जी द्वारा, संस्कृत में रचा गया था । गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा इसे प्रचलित अवधि भाषा (बोली) में लिखा गया था । तुलसीदास जी द्वारा लिखे जाने के कारन ही इसे ‘तुलसी रामायण’ या ‘तुलसीकृत रामायण’ भी कहा जाता है। वाल्मीकि रामायण और श्री राम चरित मानस में कुछ अंतर भी है । प्रचलित अवधी में रचे जाने के कारण रामचरितमानस की लोकप्रियता अद्वितीय है। उत्तर भारत में ‘रामायण’ के रूप में बहुत से लोगों द्वारा प्रतिदिन पढ़ा जाता है। शरद नवरात्रि में इसके सुन्दर काण्ड का पाठ पूरे नौ दिन किया जाता है।

 

एक उत्कृष्ट महाकाव्य : 

तुलसीदास कृत रामचरितमानस में ‘राम’ शब्द 1443 बार और ‘ सीता’ शब्द 147 बार आया है । इसमें चौपाई – 9388, दोहा – 1172, सोरठा –87, श्लोक – 47 और छन्द – 208 हैं जिनका कुल योग 10902 है । इसमें इस प्रकार 'काव्य' की दृष्टि से भी 'रामचरितमानस' एक अति उत्कृष्ट महाकाव्य है। भारतीय साहित्य-शास्त्र में 'महाकाव्य' के जितने लक्षण दिये गये हैं, वह सभी इसमें पूर्ण रूप से पाये जाते हैं।

 

:- रजत द्विवेदी