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श्रीमद्भागवत पुराण : हर अक्षर में समाये श्रीहरि

 

श्रीमद्भागवत पुराण लोकप्रियता की दृष्टि से सभी पुराणों में सबसे अधिक प्रसिद्ध है। वैष्णव शाखा से संबंधित इस ग्रंथ का मुख्य विषय ‘भक्ति योग’ है। श्रीमद्भागवत में श्रीकृष्ण को सर्वोच्च देवता अथवा ईश्वर के रूप में चित्रित-वर्णित किया गया है। श्रीमद्भागवत भक्तिरस तथा अध्यात्मज्ञान का समन्वय उपस्थित करता है। इसके अतिरिक्त इस पुराण में रस भाव की भक्ति का निरुपण भी किया गया है। परंपरागत तौर पर इस पुराण के रचयिता वेद व्यास को माना जाता है। यह विद्या का अक्षय भण्डार है।

 

श्रीमद्भागवत अमृत विचार, जन्म-जन्मांतर रहता प्रभाव

प्राणियों का सर्वविध कल्याण, इस पुण्यकथा का मूलभाव

 

भागवत में 18 हजार श्लोक, 335 अध्याय तथा 12 स्कन्ध हैं। इसके विभिन्न स्कंधों में विष्णु के लीलावतारों का वर्णन बड़ी सुकुमार भाषा में किया गया है। परंतु भगवान्‌ कृष्ण की ललित लीलाओं का विशद विवरण प्रस्तुत करनेवाला दशम स्कंध भागवत का हृदय है। इसीलिए दसवां स्कंध भक्तों में विशेष प्रिय है। 'श्रीमद्भागवत पुराण' में बार-बार श्रीकृष्ण के ईश्वरीय और अलौकिक रूप का ही वर्णन किया गया है। वैसे, श्रीमद्भागवत पुराण में बारह स्कन्ध हैं, जिनमें विष्णु के अवतारों का ही वर्णन किया गया है।

 

भागवत के 12 स्कन्:

 

प्रथम स्कन्ध : इसमें भक्तियोग और उससे उत्पन्न एवं उसे स्थिर रखने वाला वैराग्य का वर्णन किया गया है।

द्वितीय स्कन्ध : ब्रह्माण्ड की उत्त्पत्ति एवं उसमें विराट् पुरुष की स्थिति का स्वरूप।

तृतीय स्कन्ध : उद्धव द्वारा भगवान् का बाल चरित्र का वर्णन।

चतुर्थ स्कन्ध : राजर्षि ध्रुव एवं पृथु आदि का चरित्र।

पंचम स्कन्ध : समुद्र, पर्वत, नदी, पाताल, नरक आदि की स्थिति।

षष्ठ स्कन्ध : देवता, मनुष्य, पशु, पक्षी आदि के जन्म की कथा।

सप्तम स्कन्ध : हिरण्यकश्यिपु, हिरण्याक्ष के साथ प्रहलाद का चरित्र।

अष्टम स्कन्ध गजेन्द्र मोक्ष, मन्वन्तर कथा, वामन अवतार।

नवम स्कन्ध : राजवंशों का विवरण। श्रीराम की कथा।

दशम स्कन्ध : भगवान् श्रीकृष्ण की अनन्त लीलाएं।

एकादश स्कन्ध : यदु वंश का संहार।

द्वादश स्कन्ध : विभिन्न युगों तथा प्रलयों और भगवान् के उपांगों आदि का स्वरूप।

 

चतु:श्लोकी भागवत :

अगर समय कम रहता है और पूरी भागवत का पाठ करना संभव नहीं है तो चिंता की कोई बात नहीं। ये चार ऐसे श्लोक हैं जिनमें संपूर्ण भागवत-तत्व का उपदेश समाहित है। यही मूल चतु:श्लोकी भागवत है। पुराणों के मुताबिक, ब्रह्माजी द्वारा भगवान नारायण की स्तुति किए जाने पर प्रभु ने उन्हें सम्पूर्ण भागवत-तत्त्व का उपदेश केवल चार श्लोकों में दिया था। वे चार श्लोक, जिनके पाठ से पूरी भागवत पाठ का फल मिलेगा।


अहमेवासमेवाग्रे नान्यद यत् सदसत परम।
पश्चादहं यदेतच्च योवशिष्येत सोस्म्यहम

ऋतेर्थं यत् प्रतीयेत न प्रतीयेत चात्मनि।
तद्विद्यादात्मनो माया यथाभासो यथा तम:।

यथा महान्ति भूतानि भूतेषूच्चावचेष्वनु।
प्रविष्टान्यप्रविष्टानि तथा तेषु न तेष्वहम॥

एतावदेव जिज्ञास्यं तत्त्वजिज्ञासुनात्मन:।

अन्वयव्यतिरेकाभ्यां यत् स्यात् सर्वत्र सर्वदा॥
 

श्रीमद्भागवत साक्षात भगवान का स्वरूप है इसीलिए श्रद्धापूर्वक इसकी पूजा-अर्चना की जाती है। इसके पठन एवं श्रवण से भोग और मोक्ष दोनों सुलभ हो जाते हैं। मन की शुद्धि के लिए इससे बड़ा कोई साधन नहीं है। सिंह की गर्जना सुनकर जैसे भेड़िए भाग जाते हैं, वैसे ही भागवत के पाठ से कलियुग के समस्त दोष नष्ट हो जाते हैं। इसके श्रवण मात्र से हरि हृदय में आ विराजते हैं। जिस घर में नित्य भागवत कथा होती है, वह तीर्थरूप हो जाता है। केवल पठन-श्रवण ही पर्याप्त नहीं- इसके साथ अर्थबोध, मनन, चिंतन, धारण और आचरण भी आवश्यक है।

 

श्रीमद्भागवत का गुणगान करें, श्रद्धा और विश्वास से

कथा श्रवण का सुख उत्तम, जो मिलता कृपानिधान से

 

:- विजय शर्मा

 

 

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श्रीमद्भागवत पुराण : हर अक्षर में समाये श्रीहरि

 

श्रीमद्भागवत पुराण लोकप्रियता की दृष्टि से सभी पुराणों में सबसे अधिक प्रसिद्ध है। वैष्णव शाखा से संबंधित इस ग्रंथ का मुख्य विषय ‘भक्ति योग’ है। श्रीमद्भागवत में श्रीकृष्ण को सर्वोच्च देवता अथवा ईश्वर के रूप में चित्रित-वर्णित किया गया है। श्रीमद्भागवत भक्तिरस तथा अध्यात्मज्ञान का समन्वय उपस्थित करता है। इसके अतिरिक्त इस पुराण में रस भाव की भक्ति का निरुपण भी किया गया है। परंपरागत तौर पर इस पुराण के रचयिता वेद व्यास को माना जाता है। यह विद्या का अक्षय भण्डार है।

 

श्रीमद्भागवत अमृत विचार, जन्म-जन्मांतर रहता प्रभाव

प्राणियों का सर्वविध कल्याण, इस पुण्यकथा का मूलभाव

 

भागवत में 18 हजार श्लोक, 335 अध्याय तथा 12 स्कन्ध हैं। इसके विभिन्न स्कंधों में विष्णु के लीलावतारों का वर्णन बड़ी सुकुमार भाषा में किया गया है। परंतु भगवान्‌ कृष्ण की ललित लीलाओं का विशद विवरण प्रस्तुत करनेवाला दशम स्कंध भागवत का हृदय है। इसीलिए दसवां स्कंध भक्तों में विशेष प्रिय है। 'श्रीमद्भागवत पुराण' में बार-बार श्रीकृष्ण के ईश्वरीय और अलौकिक रूप का ही वर्णन किया गया है। वैसे, श्रीमद्भागवत पुराण में बारह स्कन्ध हैं, जिनमें विष्णु के अवतारों का ही वर्णन किया गया है।

 

भागवत के 12 स्कन्:

 

प्रथम स्कन्ध : इसमें भक्तियोग और उससे उत्पन्न एवं उसे स्थिर रखने वाला वैराग्य का वर्णन किया गया है।

द्वितीय स्कन्ध : ब्रह्माण्ड की उत्त्पत्ति एवं उसमें विराट् पुरुष की स्थिति का स्वरूप।

तृतीय स्कन्ध : उद्धव द्वारा भगवान् का बाल चरित्र का वर्णन।

चतुर्थ स्कन्ध : राजर्षि ध्रुव एवं पृथु आदि का चरित्र।

पंचम स्कन्ध : समुद्र, पर्वत, नदी, पाताल, नरक आदि की स्थिति।

षष्ठ स्कन्ध : देवता, मनुष्य, पशु, पक्षी आदि के जन्म की कथा।

सप्तम स्कन्ध : हिरण्यकश्यिपु, हिरण्याक्ष के साथ प्रहलाद का चरित्र।

अष्टम स्कन्ध गजेन्द्र मोक्ष, मन्वन्तर कथा, वामन अवतार।

नवम स्कन्ध : राजवंशों का विवरण। श्रीराम की कथा।

दशम स्कन्ध : भगवान् श्रीकृष्ण की अनन्त लीलाएं।

एकादश स्कन्ध : यदु वंश का संहार।

द्वादश स्कन्ध : विभिन्न युगों तथा प्रलयों और भगवान् के उपांगों आदि का स्वरूप।

 

चतु:श्लोकी भागवत :

अगर समय कम रहता है और पूरी भागवत का पाठ करना संभव नहीं है तो चिंता की कोई बात नहीं। ये चार ऐसे श्लोक हैं जिनमें संपूर्ण भागवत-तत्व का उपदेश समाहित है। यही मूल चतु:श्लोकी भागवत है। पुराणों के मुताबिक, ब्रह्माजी द्वारा भगवान नारायण की स्तुति किए जाने पर प्रभु ने उन्हें सम्पूर्ण भागवत-तत्त्व का उपदेश केवल चार श्लोकों में दिया था। वे चार श्लोक, जिनके पाठ से पूरी भागवत पाठ का फल मिलेगा।


अहमेवासमेवाग्रे नान्यद यत् सदसत परम।
पश्चादहं यदेतच्च योवशिष्येत सोस्म्यहम

ऋतेर्थं यत् प्रतीयेत न प्रतीयेत चात्मनि।
तद्विद्यादात्मनो माया यथाभासो यथा तम:।

यथा महान्ति भूतानि भूतेषूच्चावचेष्वनु।
प्रविष्टान्यप्रविष्टानि तथा तेषु न तेष्वहम॥

एतावदेव जिज्ञास्यं तत्त्वजिज्ञासुनात्मन:।

अन्वयव्यतिरेकाभ्यां यत् स्यात् सर्वत्र सर्वदा॥
 

श्रीमद्भागवत साक्षात भगवान का स्वरूप है इसीलिए श्रद्धापूर्वक इसकी पूजा-अर्चना की जाती है। इसके पठन एवं श्रवण से भोग और मोक्ष दोनों सुलभ हो जाते हैं। मन की शुद्धि के लिए इससे बड़ा कोई साधन नहीं है। सिंह की गर्जना सुनकर जैसे भेड़िए भाग जाते हैं, वैसे ही भागवत के पाठ से कलियुग के समस्त दोष नष्ट हो जाते हैं। इसके श्रवण मात्र से हरि हृदय में आ विराजते हैं। जिस घर में नित्य भागवत कथा होती है, वह तीर्थरूप हो जाता है। केवल पठन-श्रवण ही पर्याप्त नहीं- इसके साथ अर्थबोध, मनन, चिंतन, धारण और आचरण भी आवश्यक है।

 

श्रीमद्भागवत का गुणगान करें, श्रद्धा और विश्वास से

कथा श्रवण का सुख उत्तम, जो मिलता कृपानिधान से

 

:- विजय शर्मा