गुरुवार व्रत : पायें भगवान विष्णु एवं बृहस्पति देव की कृपा
सनातन धर्म में व्रत–उपवास मन की शुद्धि, आत्म-नियंत्रण और ईश्वर के प्रति समर्पण का माध्यम माने जाते हैं। यह मनुष्य को भीतर से मजबूत बनाते हैं और जीवन में प्रकाश का मार्ग दिखाते हैं। हमारी मान्यताओं मे सप्ताह के प्रत्येक दिन का अपना एक विशेष महत्व है। गुरुवार का दिन भगवान श्रीहरि विष्णु, उनके अवतारों और बृहस्पति देव को समर्पित माना जाता है। कहा जाता है कि जो भक्त भक्ति, श्रद्धा और नियमों के साथ गुरुवार व्रत का पालन करते हैं, उनके जीवन में ज्ञान, सुख-समृद्धि और स्थिरता का वास होता है। यह व्रत न केवल आध्यात्मिक विकास या प्रगति के लिए रास्ता आसान और संभव बनाता है, बल्कि जीवन के कठिन समय में आशा, विश्वास और सकारात्मक ऊर्जा भी देता है।
व्रत का महत्व
यह व्रत ज्ञान, बुद्धि और धन की प्राप्ति कराता है। भगवान बृहस्पति सभी देवताओं के गुरु हैं, इसलिए उनके आशीर्वाद से मन स्थिर होता है और निर्णय शक्ति बढ़ती है। वहीं गुरु के मजबूत होने से ही हमारा दिमाग तेज चलता है और मन की चंचलता दूर होती है। शास्त्रों के अनुसार, गुरुवार व्रत करने से जीवन के कष्ट, पाप और मानसिक अस्थिरता दूर होती है साथ ही भगवान विष्णु की कृपा से शुभ कार्यों में सफलता और इच्छाओं की पूर्ति होती है।
व्रत विधि
गुरुवार व्रत सामान्यत: शुक्ल पक्ष में पड़ने वाले पहले गुरुवार से शुरू करना चाहिए, पौष माह को छोड़कर। मान्यता के अनुसार 16 गुरुवार या 3 वर्षों तक यह व्रत किया जाता हैं। व्रत वाले दिन भोर में ही स्नान करके पीले रंग के वस्त्र पहनें क्योंकि यह रंग बृहस्पति ग्रह का प्रतीक है। मंदिर जाकर पूजा करें या फिर अपने घर के पूजा स्थान को साफ करके वहां पर भगवान विष्णु अथवा भगवान बृहस्पति का चित्र/प्रतिमा स्थापित करें। साथ ही भगवान को नया पीला वस्त्र अर्पित करें। एक लोटे में जल और हल्दी मिलाकर उसे पूजास्थल में रखें और भगवान विष्णु को गुड़ और धुली चने की दाल का भोग लगाएँ। पीले फूल, पीले चावल, केले, लड्डू, बेसन का हलवा आदि चढ़ाएं। घी का दीपक और धूप जलाएं तथा माथे पर पीला तिलक लगाएं। गुरु मंत्रों का जाप करें और गुरुवार व्रत कथा का पाठ करें। पूजा के पश्चात हल्दी, चने और गुड़ मिश्रित जल केले (कदली फल) के पौधे पर ऊं बृंहस्पत्यै नम: बोलते हुए अर्पित करें।
आहार नियम
व्रत में दिनभर का उपवास या पूजा के बाद सिर्फ एक बार भोजन किया जा सकता है। भोजन में नमक और केले का सवन वर्जित है क्योंकि केले के वृक्ष में श्रीहरि विष्णु का निवास माना गया है । इस दिन व्रती दाढ़ी, बाल या नाखून न काटें, साबुन से कपड़े और सिर न धोएं। उड़द की दाल और चावल के सेवन से बचें। मंदिर में पीली वस्तु जैसे हल्दी, चने की दाल, पीले कपड़े इत्यादि का दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
व्रत का उद्यापन
गुरुवार व्रत का उद्यापन पूरे होने के बाद आने वाले गुरुवार को किया जाता है। इससे एक दिन पहले ही क्षमतानुसार सामग्री जैसे - चने की दाल, गुड़, हल्दी, केले, पपीता, पांच तरह की पीली वस्तुएँ, पीले वस्त्र, खीर का भोग, जल का लोटा, पीले अनाज और दान के लिए पीले कपड़े तथा व्रत कथा की पुस्तकें तैयार कर लें। उद्यापन वाले दिन सुबह स्नान करके साफ और पीले कपड़े पहनें। पूजा का स्थान सजाएं और भक्ति भाव से प्रभु का ध्यान करते हुए मंत्र जाप करें। इसके बाद हाथ में जल लेकर श्री हरि विष्णु के सामने अर्पित करें, इससे व्रत का संकल्प पूर्ण माना जाता है। उद्यापन के अंत में केले के पेड़ की पूजा करें, गरीबों को पीला अन्न खिलाएँ, पीले वस्त्रों का दान करें और भगवान विष्णु व्रत विधि की पुस्तकों का दान करके उद्यापन की प्रक्रिया पूरी करें। गुरुवार व्रत केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि जीवन में अनुशासन, संयम और सकारात्मकता लाने का साधन है।
गुरुवार व्रत : पायें भगवान विष्णु एवं बृहस्पति देव की कृपा
सनातन धर्म में व्रत–उपवास मन की शुद्धि, आत्म-नियंत्रण और ईश्वर के प्रति समर्पण का माध्यम माने जाते हैं। यह मनुष्य को भीतर से मजबूत बनाते हैं और जीवन में प्रकाश का मार्ग दिखाते हैं। हमारी मान्यताओं मे सप्ताह के प्रत्येक दिन का अपना एक विशेष महत्व है। गुरुवार का दिन भगवान श्रीहरि विष्णु, उनके अवतारों और बृहस्पति देव को समर्पित माना जाता है। कहा जाता है कि जो भक्त भक्ति, श्रद्धा और नियमों के साथ गुरुवार व्रत का पालन करते हैं, उनके जीवन में ज्ञान, सुख-समृद्धि और स्थिरता का वास होता है। यह व्रत न केवल आध्यात्मिक विकास या प्रगति के लिए रास्ता आसान और संभव बनाता है, बल्कि जीवन के कठिन समय में आशा, विश्वास और सकारात्मक ऊर्जा भी देता है।
व्रत का महत्व
यह व्रत ज्ञान, बुद्धि और धन की प्राप्ति कराता है। भगवान बृहस्पति सभी देवताओं के गुरु हैं, इसलिए उनके आशीर्वाद से मन स्थिर होता है और निर्णय शक्ति बढ़ती है। वहीं गुरु के मजबूत होने से ही हमारा दिमाग तेज चलता है और मन की चंचलता दूर होती है। शास्त्रों के अनुसार, गुरुवार व्रत करने से जीवन के कष्ट, पाप और मानसिक अस्थिरता दूर होती है साथ ही भगवान विष्णु की कृपा से शुभ कार्यों में सफलता और इच्छाओं की पूर्ति होती है।
व्रत विधि
गुरुवार व्रत सामान्यत: शुक्ल पक्ष में पड़ने वाले पहले गुरुवार से शुरू करना चाहिए, पौष माह को छोड़कर। मान्यता के अनुसार 16 गुरुवार या 3 वर्षों तक यह व्रत किया जाता हैं। व्रत वाले दिन भोर में ही स्नान करके पीले रंग के वस्त्र पहनें क्योंकि यह रंग बृहस्पति ग्रह का प्रतीक है। मंदिर जाकर पूजा करें या फिर अपने घर के पूजा स्थान को साफ करके वहां पर भगवान विष्णु अथवा भगवान बृहस्पति का चित्र/प्रतिमा स्थापित करें। साथ ही भगवान को नया पीला वस्त्र अर्पित करें। एक लोटे में जल और हल्दी मिलाकर उसे पूजास्थल में रखें और भगवान विष्णु को गुड़ और धुली चने की दाल का भोग लगाएँ। पीले फूल, पीले चावल, केले, लड्डू, बेसन का हलवा आदि चढ़ाएं। घी का दीपक और धूप जलाएं तथा माथे पर पीला तिलक लगाएं। गुरु मंत्रों का जाप करें और गुरुवार व्रत कथा का पाठ करें। पूजा के पश्चात हल्दी, चने और गुड़ मिश्रित जल केले (कदली फल) के पौधे पर ऊं बृंहस्पत्यै नम: बोलते हुए अर्पित करें।
आहार नियम
व्रत में दिनभर का उपवास या पूजा के बाद सिर्फ एक बार भोजन किया जा सकता है। भोजन में नमक और केले का सवन वर्जित है क्योंकि केले के वृक्ष में श्रीहरि विष्णु का निवास माना गया है । इस दिन व्रती दाढ़ी, बाल या नाखून न काटें, साबुन से कपड़े और सिर न धोएं। उड़द की दाल और चावल के सेवन से बचें। मंदिर में पीली वस्तु जैसे हल्दी, चने की दाल, पीले कपड़े इत्यादि का दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
व्रत का उद्यापन
गुरुवार व्रत का उद्यापन पूरे होने के बाद आने वाले गुरुवार को किया जाता है। इससे एक दिन पहले ही क्षमतानुसार सामग्री जैसे - चने की दाल, गुड़, हल्दी, केले, पपीता, पांच तरह की पीली वस्तुएँ, पीले वस्त्र, खीर का भोग, जल का लोटा, पीले अनाज और दान के लिए पीले कपड़े तथा व्रत कथा की पुस्तकें तैयार कर लें। उद्यापन वाले दिन सुबह स्नान करके साफ और पीले कपड़े पहनें। पूजा का स्थान सजाएं और भक्ति भाव से प्रभु का ध्यान करते हुए मंत्र जाप करें। इसके बाद हाथ में जल लेकर श्री हरि विष्णु के सामने अर्पित करें, इससे व्रत का संकल्प पूर्ण माना जाता है। उद्यापन के अंत में केले के पेड़ की पूजा करें, गरीबों को पीला अन्न खिलाएँ, पीले वस्त्रों का दान करें और भगवान विष्णु व्रत विधि की पुस्तकों का दान करके उद्यापन की प्रक्रिया पूरी करें। गुरुवार व्रत केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि जीवन में अनुशासन, संयम और सकारात्मकता लाने का साधन है।