Sanskar
Related News

कैसे कुबेर को सिखाई गणपति बप्पा ने सच्चे धन की पहचान

एक समय की बात है, धन और यश के देवता कुबेर को अपने अपार वैभव पर अहंकार हो गया। वे सोचने लगे कि उनके पास इतना धन है कि देवताओं में कोई भी उनके वैभव की बराबरी नहीं कर सकता। अपने इस अभिमान को दिखाने के लिए उन्होंने अपने महल में एक भव्य भोज का आयोजन किया और सभी देवताओं को निमंत्रण भेजा।


भगवान शिव को पहले ही स्मरण हो गया था की कुबेर अपने धन और वैभव का प्रदर्शन करने के लिए बुला रहे है..इसलिए भगवान शिव ने अपने स्थान पर अपने पुत्र गणेशजी को भोज में भेज दिया। 


गणेशजी जैसे ही कुबेर के महल पहुँचे, उनका स्वागत बड़े वैभव से हुआ। सोने-चाँदी के थालों में व्यंजन परोसे गए, लेकिन गणेशजी की भूख इतनी अपार थी कि उन्होंने सारे व्यंजन खत्म कर दिए।


कुबेर ने तुरंत और पकवान मंगवाए, पर गणेशजी खाते ही रहे। देखते ही देखते महल का सारा भोजन समाप्त हो गया। जब कुछ नहीं बचा तो गणेशजी ने महल की सजावट तक खाना शुरू कर दिया। वे बर्तन, गहने, यहाँ तक कि महल की कीमती वस्तुएँ तक खाने लगे।
कुबेर अब भयभीत हो गए। उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ—उन्होंने अभिमान में आकर ईश्वर को केवल वैभव से प्रसन्न करने की कोशिश की थी, प्रेम और भक्ति से नहीं।


घबराए कुबेर कैलाश पहुँचे और शिव-पार्वती से क्षमा माँगते हुए प्रार्थना की कि वे गणेशजी की भूख शांत करें। माता पार्वती मुस्कुराईं और प्रेम से कुछ सादे चावल भूनकर दिए, और कहा—"इन्हें प्रेम और श्रद्धा से अर्पित करोगे, तो गणेश प्रसन्न होंगे।


कुबेर तुरंत लौटे और गणेशजी को वे सादे चावल अर्पित किए।प्रेम और श्रद्धा से की गई भेंट को गणेशजी ने प्रसन्न होकर स्वीकार किया और उनकी भूख शांत हो गई। 

 

ईश्वर को खुश करने के लिए धन नहीं, सच्चा प्यार और विनम्रता चाहिए। अहंकार छोड़ो, सादगी अपनाओ। 

 

:- रजत द्विवेदी