जब भी ज्ञान के प्रारंभ की चर्चा होगी श्री कृष्ण सार्थक हो जाएंगे। वे पहले ऐसे विचारक थे जिन्होंने सच्चे अर्थों में शिक्षक परंपरा का श्रीगणेश किया। उन्होंने वास्तविक शिक्षा के नए मानदंड निर्मित किए। अमूल्य सिद्धांतों और नियमों का प्रतिपादन किया।
संपूर्ण विश्व को दिशा देने वाला गीता का उपदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना महाभारत युद्ध के समय था। युद्धभूमि में अर्जुन के मोह और विषाद को समाप्त कर श्रीकृष्ण ने जो शिक्षा दी, वही आगे चलकर गीता के रूप में विश्व को मार्गदर्शन देती रही। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि जीवन का आधार कर्म है और मनुष्य को अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।
गीता का प्रत्येक श्लोक शिक्षा का अमृत है। इसमें जीवन के प्रत्येक क्षेत्र के लिए संदेश निहित है। राजनीति के लिए, समाज के लिए, नैतिकता के लिए और अध्यात्म के लिए भी। यही कारण है कि गीता को उपनिषदों का सार कहा गया है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को न केवल धर्मयुद्ध के लिए प्रेरित किया, बल्कि संपूर्ण मानवता को यह शिक्षा दी कि मनुष्य को अपने धर्म का पालन करते हुए निष्काम कर्म करना चाहिए।
उन्होंने कहा – "हे अर्जुन! मनुष्य को अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए और कर्म करते समय फलों की इच्छा नहीं करनी चाहिए।" यही निष्काम कर्मयोग का सिद्धांत है।
श्रीकृष्ण ने गीता के माध्यम से ज्ञान, भक्ति और कर्म—इन तीनों मार्गों का प्रतिपादन किया और उन्हें जीवन का आधार बताया। उन्होंने सिखाया कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष—इन चार पुरुषार्थों में संतुलन बनाए रखना ही मानव जीवन का उद्देश्य है।
उनकी शिक्षा केवल युद्धभूमि तक सीमित नहीं रही, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में उसका अनुप्रयोग हुआ। उन्होंने मानव को साहस, धैर्य और दृढ़ता का संदेश दिया। अन्याय और अधर्म के विरुद्ध संघर्ष करने की प्रेरणा दी। यही कारण है कि उन्हें प्रथम शिक्षक कहा गया है।
:- जगद्गुरु प्रोफेसर पुष्पेंद्र कुमार आर्यम जी महाराज