जो बुद्धि, विद्या एवं शुभ फल दाता हैं, उनकी महिमा से भला कौन परिचित नहीं है। जो गणों में इष्ट हैं, सनातन धर्म में सर्वोच्च हैं और देवताओं में प्रथम पूज्य हैं। जल तत्व के अधिपति भगवान गणेश दु:खहर्ता और मंगलकारी देवता है। वे अपने भक्तों के सारे कष्ट दूर करते हैं। ऐसे भगवान गणेश की दिव्यता और लीला की कई कथाएं हैं। लेकिन क्या आप गणेश जी के संपूर्ण परिवार के बारे में जानते हैं ?
वैसे तो भगवान गणेश उस परिवार का हिस्सा हैं जिसे हर सनातनी हिंदू पूजता है अर्थात शिव परिवार जिसमें शंकर-पार्वती और उनके पुत्र कार्तिकेय और गणेश अवस्थित हैं । इसी तरह अशोक सुंदरी, शाम्भ्रिवरी, धोतली, जया, मनसा और देव नामक उनकी पांच पुत्रियां भी हैं । किंतु अपने पिता की तरह गणेश जी का परिवार भी विशाल है ।
शिवमहापुराण और गणेश पुराण के अनुसार एक समय सतयुग में समुद्र तट पर गणेश जी तपस्या में लीन, महादेव का ध्यान कर रहे थे। तभी श्रीहरि का पूजन करने जा रही तुलसी देवी की दृष्टि तपस्यारत गणेश जी पर पड़ी। वह उनका सुंदर रूप देखकर स्पर्श करते हुए उनसे विवाह का प्रस्ताव रखती हैं। गणेश जी ने देवी तुलसी की मंशा जानकर स्वयं को ब्रह्मचारी बताया और विवाह प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। इस पर देवी तुलसी क्रोधित हो गईं और उन्हें दो-दो विवाह होने का श्राप दे बैठती हैं।
कुछ समय बाद देवशिल्पी प्रजापति विश्वकर्मा की दो बेटियां रिद्धि और सिद्धि भगवान गणेश का पति के रुप में वरण करती हैं। रिद्धि का अर्थ है 'बुद्धि' जिसे 'शुभ' कहते हैं। ठीक इसी तरह सिद्धि का अर्थ होता है 'आध्यात्मिक शक्ति' यानी 'लाभ'।
रिद्धि और सिद्धी की शक्ति और नाम के अनुसार ही इन दोनों पत्नियों से दो पुत्रों का जन्म हुआ जिनमें बड़ी बहन रिद्धि से शुभ और छोटी बहन सिद्धि से लाभ का जन्म हुआ। वहीं भगवान गणेश जी की पुत्री का नाम संतोषी है। जिन्हे प्रेम, क्षमा और संतोष का प्रतीक माना जाता हैं। शुभ की पत्नी का नाम तुष्टि और लाभ की पत्नी का नाम पुष्टि है। ये दोनों गणेश जी की पुत्र-वधू हैं। देवी तुष्टि और पुष्टि से दो संतान हुईं। जिनमें तुष्टि से आमोद का जन्म हुआ और पुष्टि से प्रमोद का जन्म हुआ और इस प्रकार गणेश परिवार पूर्ण हुआ।
गणेशजी के पुत्रों के नाम हम 'स्वास्तिक' के दाएं-बाएं लिखते हैं। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भगवान गणेश जी 'बुद्धि के देवता' होने के नाते देवों में प्रथम पूज्य हैं और 'स्वास्तिक' बुद्धि को प्रस्तुत करने का पवित्र चिन्ह है। घर के मुख्य द्वार पर स्वास्तिक बनाना और शुभ-लाभ लिखना इन्हीं शक्तियों का प्रतीक होता है ।
मान्यता है कि जहां-जहां शुभ-लाभ की पूजा होती है वहाँ तुष्टि और पुष्टि भी विराजमान रहती हैं क्योंकि इन दोनों के बिना गणेश परिवार अधूरा है। तो ये थी गणेश परिवार की महिमा। आज भी देश में ऐसे कई मंदिर हैं जहां गणेश जी अपने पूरे परिवार के साथ विराजमान हैं और ऐसे स्थान अतिपूजनीय हैं।