Sanskar
Related News

संतान को समर्पित है अहोई अष्टमी का व्रत

अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी व अष्टमी अर्थात दोनों तिथियों के मिलन के दिन किया जाता है। इस व्रत के माध्यम से स्त्रियां अपनी संतान की लंबी आयु, स्वास्थ्य, समृद्धि  और अनहोनी से रक्षा करने की कामना करती हैं। इस तरह यह व्रत अपनी संतान को समर्पित है।

 

इस दिन महिलाएं अहोई माता की पूजा-अर्चना करती हैं। साथ ही इस व्रत की कथा का पाठ करना या सुनना फलदायी बताया गया है। उत्तर भारत के विभिन्न अंचलों में अहोईमाता का स्वरूप वहाँ की स्थानीय परम्परा के अनुसार बनता है। इस दिन मिट्टी खोदना, लीपना, सिलाई, बुनाई व कील गाड़ना इस्त्यादि काम वर्जित बताए गए हैं। घर की महिलाएं चाँदी की होई बनवाती हैं। ये माला वंश की वृद्धि के लिए बनाई जाती है । जिस वर्ष घर में विवाह या संतान होती है उस के हिसाब से माला में चांदी के मोती बढ़ाए जाते हैं । अहोई माता को ये माला पहनाने के बाद स्वयं माताएं इस माला को धारण करती हैं।

 

इस दिन माताएं दूध से बनी वस्तुओं को ग्रहण नहीं करती हैं क्योंकि शास्त्रों में दूध को पुत्र के समान बताया गया है। अहोई माता के पूजन में भूमि से जुडी वस्तुएं रखी जाती हैं जैसे - गन्ना, सिंघाड़ा, मूली, शकरकंद, पालक व ऋतु फल इत्यादि। अहोई के दिन पूजा में रखे गए जल से दीपावली के दिन घर के सभी सदस्य उस जल को पानी में मिलकर स्नान करते हैं । साथ ही जिस स्थान पर अहोई माता की पूजा की जाती है उसी स्थान पर दीपावली की पूजा करने का विधान होता है। ये व्रत भी करवा चौथ की तरह निर्जल रखा जाता है और शाम के समय तारों को करवा से अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाता है। इस दिन गौ माता की पूजा विशेष रूप से करनी चाहिए। गौशाला में अपनी क्षमता अनुसार चारा इत्यादि दान करना चाहिए। अहोई पर्व पर वृन्दावन में स्थित राधा कुंड स्नान का बड़ा महत्व होता है। इसदिन यहाँ बहुत बड़ा मेला लगता है । माना जाता है की ये कुंड अहोई अष्टमी के दिन ही प्रकट हुआ था।

 

:- रमन शर्मा