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पंच महापर्व ‘दीपावली’ का संदेश

सनातन धर्म में दीपावली सिर्फ एक त्योहार मात्र नहीं है बल्कि यह पांच पर्वों का महाउत्सव है। धनतेरस से आरंभ होकर यह पर्व भाईदूज तक होता है। इस दौरान पड़ने वाले त्योहार अपने अनुष्ठान, प्रायोजन और संदेश को लेकर विभिन्ता रखते हैं। इसीलिए यह पांच दिवसीय महापर्व सनातन धर्म का सबसे बड़ा मांगलिक अवसर है।

 

धनतेरस से शुभारंभ

इस महापर्व का आरंभ धनतेरस अर्थात धन त्रयोदशी से होता है । इस दिन लक्ष्मी और कुबेर जी के साथ भगवान धन्वंतरि की भी पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता है वह इसी दिन भगवान विष्णु के अवतार के रूप में समुद्र मंथन से अवतरित हुए थे। धन्वंतरि जी आयुर्वेद के जनक हैं और स्वास्थ्य-चिकित्सा के देवता हैं।

 

आसुरी शक्तियों पर विजय की प्रेरणा

इसके अगले दिन नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली मनाई जाती है । इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर नाम के राक्षस का वध किया था। अर्थात आसुरी शक्तियों के विनाश के रूप में यह पर्व मनाने की मान्यता है। इसे रूप चौदस भी कहते हैं और प्रात: काल पूजा का विधान होता है।

 

गणेश- लक्ष्मी की ही पूजा क्यों ?

इसके बाद आती है दीपावली। यूं तो प्रचलित रूप में इसे लंका विजय के बाद भगवान राम के अयोध्या आगमन के उल्लास से जोड़कर देखा जाता है जब अवधवासियों ने दीप प्रज्जवलित किया था । लेकिन यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि इस दिन विशेष रूप से राम, सीता और लक्ष्मण की पूजा होनी चाहिये।  हालांकि इस दिन उत्तर भारत में विशेष रूप  से गणेश और लक्ष्मी की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि जब माता लक्ष्मी समुद्र मंथन से प्रकट हुईं और बैकुंठ जाकर भगवान के गले में माला पहनाई तो बैकुंठवासियों ने अपने-अपने घरों में दीप जलाकर के लक्ष्मी-नारायण के विवाह का उत्सव मनाया था। उसके बाद जब वही बैकुंठवासी मृत्युलोक में आए तो दिवाली का पर्व मनाना शुरू किया। तब से दिवाली का पर्व मनाया जाता है और दिवाली के दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है।

 

प्रश्न यह भी है कि  लक्ष्मी जी की पूजा के साथ गणेश भगवान की पूजा के पीछे की क्या मान्यता है ?  दरअसल, एक तो गणेश जी प्रथम पूज्य हैं इसलिए हर पूजा में उनका स्थान और पूजन निश्चित है लेकिन लक्ष्मी जी के साथ विशेष पूजन के पीछे मान्यता यह है कि जिस व्यक्ति के पास ज्ञान होता है उसी के पास धन भी आता है। इसलिये न सिर्फ दोनों का पूजन साथ में होता है बल्कि घर और प्रतिष्ठान में पूरे साल के लिए गणेश-लक्ष्मी विराजमान हो जाते हैं ।

 

गोवर्धन पूजा का प्रायोजन

दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा है । इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा ऊंगली पर धारण करते हुए समस्त ब्रजवासियों की इंद्र के प्रकोप से रक्षा की थी । इसी दिन विश्वकर्मा जयंती भी मनाई जाती है और अन्न की देवी मां अन्नपूर्णा को समर्पित अन्नकूट पूजा भी होती है।

 

भाईदूज की महिमा

गोवर्धन पूजा के अगले दिन भाई दूज का महान पर्व होता है। इसे यम द्वितिया भी कहते हैं। मान्यता है कि इस दिन मृत्यु के देवता यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने उनके घर गए थे और आशीर्वाद दिया था कि इस दिन जो भाई अपनी बहन के घर जाकर उसे उपकृत करेगा उस पर अकाल मृत्यु का साया कभी नहीं पड़ेगा । आज भी मथुरा में इस दिन भाई-बहन एक साथ यमुना में स्नान करते हैं और जप-तप-दान इत्यादि करते हैं।

 

सर्वे भवंतु सुखिन:

इस तरह आपने देखा कि इस दौरान पड़ने वाले सभी त्योहार आपस में अटूट संबंध रखते हैं। सब किसी न किसी रूप में प्रकाश, प्रकृति, स्वास्थ्य, सद्भाव इत्यादि से जुड़े हैं। सबके पीछे सबके मंगल का प्रायोजन है। सर्वे भवंतु सुखिन: का भाव है। सबके कल्याण, समृद्धि और आरोग्यता का भाव है। जाहिर है पंचपर्व दीपावली हमारे जीवन में एक बड़ी संदेश ही नहीं, अपने परिवार, समाज और राष्ट्र के लिए एक बड़े दायित्व का उद्घोष करते हैं जिसके अनुशरण में ही प्राणि मात्र की भलाई है।

 

:- विजय शर्मा