Sanskar
Related News

लक्ष्मी जी, आपका अतिशय स्वागत है !

बहुत से रीति रिवाजों और मान्यताओं को लेकर सभी धर्मों में कुछ न कुछ मतभेद हैं लेकिन एक बात ऐसी है जिस पर सभी राजी हैं। एक देवी ऐसी हैं, जो अपने अलग अलग स्वरूपों और मुद्राओं में सब जगह विराजित हैं। राजा हो या फकीर सभी को वे समान प्रिय हैं; जी हां, मैं बात कर रहा हूं- धन सम्पदा की अधिष्ठात्री देवी श्री लक्ष्मी की। इस दुनियावी परंपरा में जहां हर चीज कभी न कभी अपवित्र और अछूत हो जाती हो; वहां निर्विवाद रूप से श्री लक्ष्मी सदा-सर्वदा स्वीकार्य हैं। उन्हें छूने और पाने में किसी को भी कोई भी गुरेज नहीं है। इस जीवन जगत की संचालिका श्री लक्ष्मी आपका हार्दिक अभिनन्दन है, अतिशय स्वागत है।

श्री लक्ष्मी का प्रारुप
वैदिक वाङ्गमय और विश्व संस्कृति के आदि ग्रन्थ 'ऋग्वेद' में 'श्री विद्या' के महत्त्व का वर्णन है। ईश स्तुतियों के एक निश्चित मंत्र समूह को 'सुक्त' कहा जाता है। सुक्त का शाब्दिक अर्थ है- 'शोभन उक्ति विशेष'! वर्तमान में ऋग्वेद संहिता के मात्र 1028 सूक्त ही उपलब्ध हैं। इन सूक्तों में दो सूक्त विशेष महिमा से युक्त हैं। ये हैं पुरुष सूक्त और श्री सूक्त। 'पुरुष सूक्त' (10/90) में परब्रह्म या परमात्मा के विराट स्वरुप का वर्णन करते हुए उन्हें 'सहस्त्रशीर्षा पुरुषः सहस्त्राक्षः सहस्रपातः' कहा गया है। परमात्मा सृष्टि, लय तथा स्थिति का कर्ता है। वह अपने समस्त कार्य प्रकृति की सहायता से संपन्न करता है। इस मूल प्रकृति के कई नाम हैं जैसे भगवती, शक्ति, देवी, ईश्वरी, और लक्ष्मी। परमात्मा की इस शक्ति की व्याख्या, प्रभाव और प्रसन्नता का हेतु 'श्री सूक्त' है। श्री सूक्तं में 'श्री' और 'लक्ष्मी' को एक ही दैवीय प्रभाव के दो स्वरुप माना गया है।

शक्ति प्रतिष्ठा के सर्वोच्च ग्रन्थ 'दुर्गा सप्तसती' में ' 700 मंत्र हैं। इसी ग्रन्थ के 'प्रधानिकं रहस्य' में श्री शक्ति को 'महालक्ष्मी के रूप में संबोधित किया गया है।

महालक्ष्मी को ही अनेक ग्रंथों में अधिष्ठात्री शक्ति माना गया है। उन्हीं से महाकाली और महासरस्वती का प्रादुर्भाव हुआ है।

यथा-

'महालक्ष्मीर्महाराज सर्वसत्त्वमयीश्वरी।
निराकारा च साकारा सैव नानाभिधानभृत।।'

(दुर्गा सप्तशती-प्राधानिक रहस्य)

अर्थात महालक्ष्मी ही सर्वसत्त्वमयी एवं सर्व तत्त्वों की अधीश्वरी हैं, वही निराकार और साकार रहते हुए विविध स्वरूपों को धारती हैं।

दीपावली और श्री लक्ष्मी

श्री महालक्ष्मी की प्रसन्नता और कृपा का सबसे बड़ा पर्व दीपावली है। कार्तिक मास की अमावस तिथि को प्रदोष काल और अर्द्धरात्रि व्यापिनी हो तो यह शुभ संयोग लक्ष्मी प्राप्ति का हेतु होता है।

'कार्तिकस्यासिते पक्षे लक्ष्मीनिंदां विमुञ्चति।
स च दीपावली प्रोक्ताः सर्वकल्याणरूपिणी ।।'

(ज्योतिर्निबंध)

'धर्मसिंधु' में भी कहा गया है-

'प्रदोषे दीपदान, लक्ष्मी पूजनादि विहितं ।।'

यही बात 'तत्त्व चिंतामणि' में भी उल्लेखित है।

'कार्तिक कृष्ण पक्षे च प्रदोषे भूतदर्शयोः,
नरः प्रदोष समये दीपान दद्यात मनोरमान ।।'

दीपावली वास्तव में पांच पर्वो का महोत्सव है, जिसका प्रारम्भ कार्तिक कृष्ण त्रियोदशी (धन-तेरस) से और समापन कार्तिक शुक्ल द्वितीया (भैया दूज) को होता है।

महालक्ष्मी मंत्र

यज्ञ के लिये विशिष्ट मंत्र यह है-

'ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै स्वाहा।।'

अनिष्ट मुक्ति मंत्र

रुद्राक्ष की माला पर अनिष्ट की मुक्ति हेतु मंत्र आप का विधान है। इसके लिये द्वादशाक्षर मंत्र यह है- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सौं जगत्प्रसूत्यै नमः ।।'

रोग ऋण मुक्ति मंत्र

लाल मूंगे की माला पर 'श्रीं नमः' जप करने से रोगों और ऋण से मुक्ति मिलती है। इस अवसर पर धन के देवता कुबेर और आरोग्य की देवी काली के भी पूजन का विधान है।

स्थिर लक्ष्मी हेतु कुबेर सिद्धि मंत्र

कुबेर सिद्धी का विशेष मंत्र है- 'ऐं श्रीं ह्रीं टेम चलीं पं ॐ यक्षाय कुबेराय।।' इस मंत्र के जाप से स्थायी लक्ष्मी का वास होता है!

दीपावली साधकों और तंत्र के अभ्यासी के लिये शक्ति संवर्धन और संचय का पर्व भी है। महाकाली के पूजन का भी इस पर्व विशेष पर खास महत्त्व है। महाकाली साधक को सभी झंझटों से मुक्ति प्रदान करके सुख, संपत्ति, पराक्रम, प्रतिष्ठा, आरोग्य और पद प्रदान करती हैं।

महाकाली का बीज मंत्र

महाकाली की प्रसन्नता के लिये बीजमंत्र 'की नमः' का जाप करें। तन और मन की शुद्धि से ही मंत्र जाप की सार्थकता है। जिन घरों में स्त्रियों का अनादर होता है, वहां लक्ष्मी कभी स्थायी रूप से नहीं रहती। इस वर्ष दीपावली चित्रा/स्वाति नक्षत्र, प्रीति योग कालीन प्रदोष निशीथ काल एवम आशिक काल के लिये महानिशीथ व्यापिनी अमावस्या युक्त होने से विशेष शुभ और मंगलकारी है।

- जगद्गुरु प्रो. पुष्पेंद्र कुमार आर्यम जी महाराज