छठ महापर्व में छठी मइया और भगवान सूर्य देव की पूजा की जाती है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार छठी मइया को ब्रह्मदेव की पुत्री और भगवान सूर्य की बहन कहा जाता है। छठी माई को संतान प्राप्ति की देवी और सूर्य देव को शरीर का स्वामी या देवता कहा जाता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, जब भगवान ने सृष्टि की रचना की, तो उन्होंने पुरुष और प्रकृति के द्वैत की भी रचना की। उन्होंने खुद को दो भागों में विभाजित कर लिया। एक भाग पुरुष और दूसरा प्रकृति का। इसके बाद प्रकृति ने भी खुद को 6 भागों में विभाजित कर लिया, जिसमें से एक देवी मां हैं। छठी मईया देवी मां का छठा अंश हैं, इसलिए उन्हें छठी मइया या प्रकृति की देवी के रूप में जाना जाता है । यह मातृ देवी देवसेना हैं जिन्हें छठी माता के नाम से पूजा जाता है।
इस तरह छठी मैया का स्वरूप मातृ शक्ति का प्रतीक है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को इन्हीं की पूजा की जाती है। बच्चे की छठी पर भी इन्हें ही पूजा जाता है। छठी देवी बच्चों को स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घायु होने का आशीर्वाद देती हैं। साथ ही पुराणों में इन्हीं देवी का नाम कात्यायनी बताया गया है, जो नवदुर्गा का छठा स्वरूप हैं।
छठ पूजा के दौरान विभिन्न प्रकार के अनुष्ठान किए जाते हैं। ये अनुष्ठान उपासकों की भक्ति और समर्पण को दर्शाते हैं। त्यौहार की तैयारी पहले से ही शुरू हो जाती है, जिसमें घरों की सफाई और सजावट, मन की पवित्रता बनाए रखना शामिल है। भक्त, मुख्य रूप से महिलाएं, त्यौहार के दौरान सख्त उपवास रखती हैं और सूर्य की पूजा करती हैं। चार दिनों तक चलने वाले छठ महापर्व में संध्या का अर्घ्य षष्ठी माता को दिया जाता है जबकि उषा बेला में भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। यह पूजा महिलाओं के द्वारा अत्यधिक विश्वास और भक्ति के साथ की जाती है। भगवान सूर्य की यह पूजा उपासकों के ह्दय में पवित्रता और परमात्मा के साथ उनके संबंध का प्रतीक है।
छठ पूजा के 4 पवित्र दिन :
नहाय-खाय (25 अक्टूबर) - व्रती सबसे पहले स्नान कर घर की शुद्धि करती हैं और सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं। प्रसाद में मुख्य रूप से कद्दू भात बनाना आवश्यक है।
खरना (26 अक्टूबर) – दिन भर उपवास रखकर शाम को गुड़-चावल की खीर और रोटी का प्रसाद बनाकर छठी मैया को अर्पित किया जाता है।
संध्या अर्घ्य (27 अक्टूबर) - व्रती डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर सूर्यदेव और छठी मैया की आराधना करती हैं.
उषा अर्घ्य (28 अक्टूबर) - अंतिम दिन सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और व्रत का समापन होता है।
छठ पूजा को सूर्य षष्ठी, छठ, छठी, छठ पर्व, डाला पूजा तथा डाला छठ के नाम से भी जाना जाता है। इस पर्व को लेकर एक मान्यता यह भी है कि अगर इसे पूरी पवित्रता और सच्चे मन से किया जाए तो व्रती की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। भगवान सूर्य और छठी मईया से अपने पुत्र और परिवार की रक्षा और लंबी आयु की कामना के लिए 36 घंटे के इस पर्व पर व्रत रखा जाता है। हिंदू धर्म के सभी त्योहारों और व्रतों में छठी मईया की पूजा सबसे कठिन और फलदायी मानी जाती है। यह पर्व संदेश देता है कि हमें हर हाल में प्रकृति और परिवार से जुड़े रहना है और अस्त को भी उदय जितना सम्मान मिलना चाहिए।
छठ पूजा प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का पर्व है। इसीलिए जिन सामग्रियों का उपयोग होता है, वो भी प्राकृतिक ही होती हैं। पूजा के लिए बांस से बने सूप और दउरा का उपयोग किया जाता है। बांस एक प्राकृतिक वस्तु है और इसे प्रकृति का प्रतीक माना जाता है। पूजा की सामग्री को रखने के लिए बांस के पात्रों का प्रयोग होता है, ताकि प्रसाद और अर्घ्य की पवित्रता बनी रहे। मान्यता है कि अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए छठी मैया को सिंदूर, चावल, चना, गुड़, मिठाई, सात तरह के फल, श्रृंगार का सामान और घी का ठेकुआ चढ़ाना चाहिए।
- आस्था मिनाक्षी

