कार्तिक पूर्णिमा को हिंदू धर्म का सबसे पवित्र महीना माना जाता है। यूँ तो पूर्णिमा प्रत्येक मास के शुक्लपक्ष का पंद्रहवाँ दिन होता है लेकिन कार्तिक मास की पूर्णिमा का बहुत ही महत्व माना गया है। इस दिन हिन्दू धर्म में गंगा स्नान की भी परंपरा है। गंगा स्नान करने के पश्चात सूर्य देव को अर्ध्य अवश्य देना चाहिए। मानते हैं कि ऐसा करने से मनुष्य को अपने किये गए पापों से मुक्ति प्राप्त होती है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन स्नान इत्यादि करके गरीबों को कुछ न कुछ दान करना चाहिये।। ऐसा करने से उसका हजार गुना फल प्राप्त होता है। इस दिन बहुत सारे लोग व्रत भी करते हैं। व्रत का संकल्प लिया जाता है और फलाहार किया जाता है।
भगवान विष्णु से संबंध
इस दिन भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी की पूजा की जाती है। कई जगहों पर भगवान श्री कृष्ण के विग्रह की पूजा की जाती है। पुराणों के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु ने प्रलय काल में धर्म, वेदों की रक्षा के लिए तथा सृष्टि की रक्षा के लिए मत्स्य अवतार धारण किया था। इसके अतिरिक्त आषाढ़ शुक्ल एकादशी से भगवान विष्णु चार मास के लिए योगनिद्रा में लीन होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी को पुन: उठते हैं और पूर्णिमा से कार्यभार संभाल लेते हैं ।
कार्तिक के महीने की देवोत्थानी एकादशी के दिन लक्ष्मी की अंशरूपा तुलसी जी का विवाह विष्णु स्वरूप शालिग्राम से होता है और कार्तिक पूर्णिमा के दिन तुलसी जी की विदाई होती है। इन्ही कारण देवता स्वर्गलोक में दिवाली मनाते हैं और इसीलिए इसे देवदिवाली भी कहा जाता है।
भगवान शंकर से संबंध
इस विशेष दिवस पर भगवान शिव की भी पूजा करने का विधान है क्योंकि इसी दिन ही भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का अंत किया था और वे त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए थे। इसीलिए इस पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन कृतिका में शिव शंकर के दर्शन करने से मनुष्य अगले सात जन्म तक ज्ञानी, धनवान और भाग्यशाली होता है।
इस दिन चन्द्र जब आकाश में उदित हो रहा हो उस समय या उसके बाद रात्रि में कभी भी शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छ: कृतिकाओं के नाम का 21 बार उच्चारण करते हुए इनका पूर्ण श्रद्धा से पूजन करने से जातक को भगवान शिव जी की अनुकम्पा प्राप्त होती है, जीवन में किसी भी वस्तु का अभाव नहीं होता है।
यूं तो पूरे देश के मंदिरों, नदियों और सरोवरों में लोग पूजा-पाठ और स्नान के लिए इस दिन जुटते हैं लेकिन अयोध्या में विशाल कार्तिक पूर्णिमा मेले का आयोजन होता है। अयोध्या में बढ़ती भीड़ को देखते हुए प्रशासन की ओर से जबरदस्त तैयारी की जा रही है। इस दौरान राम मंदिर में भी लाखों भक्तों के उमड़ने के आसार हैं ।
अयोध्या की प्रसिद्ध 14 कोसी और पंचकोसी परिक्रमा सकुशल संपन्न होने के बाद प्रशासन अब कार्तिक पूर्णिमा स्नान की तैयारी में है। मेले का मुख्य स्नान पर्व चार नवंबर को रात्रि 21:07 बजे से पांच नवंबर शाम 6:42 बजे संपन्न होगा। यह इस मेले का महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें डेढ़ किमी की परिधि में लाखों श्रद्धालुओं का जमावड़ा होता है।
कार्तिक पूर्णिमा को हिंदू धर्म का सबसे पवित्र महीना माना जाता है। यूँ तो पूर्णिमा प्रत्येक मास के शुक्लपक्ष का पंद्रहवाँ दिन होता है लेकिन कार्तिक मास की पूर्णिमा का बहुत ही महत्व माना गया है। इस दिन हिन्दू धर्म में गंगा स्नान की भी परंपरा है। गंगा स्नान करने के पश्चात सूर्य देव को अर्ध्य अवश्य देना चाहिए। मानते हैं कि ऐसा करने से मनुष्य को अपने किये गए पापों से मुक्ति प्राप्त होती है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन स्नान इत्यादि करके गरीबों को कुछ न कुछ दान करना चाहिये।। ऐसा करने से उसका हजार गुना फल प्राप्त होता है। इस दिन बहुत सारे लोग व्रत भी करते हैं। व्रत का संकल्प लिया जाता है और फलाहार किया जाता है।
भगवान विष्णु से संबंध
इस दिन भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी की पूजा की जाती है। कई जगहों पर भगवान श्री कृष्ण के विग्रह की पूजा की जाती है। पुराणों के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु ने प्रलय काल में धर्म, वेदों की रक्षा के लिए तथा सृष्टि की रक्षा के लिए मत्स्य अवतार धारण किया था। इसके अतिरिक्त आषाढ़ शुक्ल एकादशी से भगवान विष्णु चार मास के लिए योगनिद्रा में लीन होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी को पुन: उठते हैं और पूर्णिमा से कार्यभार संभाल लेते हैं ।
कार्तिक के महीने की देवोत्थानी एकादशी के दिन लक्ष्मी की अंशरूपा तुलसी जी का विवाह विष्णु स्वरूप शालिग्राम से होता है और कार्तिक पूर्णिमा के दिन तुलसी जी की विदाई होती है। इन्ही कारण देवता स्वर्गलोक में दिवाली मनाते हैं और इसीलिए इसे देवदिवाली भी कहा जाता है।
भगवान शंकर से संबंध
इस विशेष दिवस पर भगवान शिव की भी पूजा करने का विधान है क्योंकि इसी दिन ही भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का अंत किया था और वे त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए थे। इसीलिए इस पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन कृतिका में शिव शंकर के दर्शन करने से मनुष्य अगले सात जन्म तक ज्ञानी, धनवान और भाग्यशाली होता है।
इस दिन चन्द्र जब आकाश में उदित हो रहा हो उस समय या उसके बाद रात्रि में कभी भी शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छ: कृतिकाओं के नाम का 21 बार उच्चारण करते हुए इनका पूर्ण श्रद्धा से पूजन करने से जातक को भगवान शिव जी की अनुकम्पा प्राप्त होती है, जीवन में किसी भी वस्तु का अभाव नहीं होता है।
यूं तो पूरे देश के मंदिरों, नदियों और सरोवरों में लोग पूजा-पाठ और स्नान के लिए इस दिन जुटते हैं लेकिन अयोध्या में विशाल कार्तिक पूर्णिमा मेले का आयोजन होता है। अयोध्या में बढ़ती भीड़ को देखते हुए प्रशासन की ओर से जबरदस्त तैयारी की जा रही है। इस दौरान राम मंदिर में भी लाखों भक्तों के उमड़ने के आसार हैं ।
अयोध्या की प्रसिद्ध 14 कोसी और पंचकोसी परिक्रमा सकुशल संपन्न होने के बाद प्रशासन अब कार्तिक पूर्णिमा स्नान की तैयारी में है। मेले का मुख्य स्नान पर्व चार नवंबर को रात्रि 21:07 बजे से पांच नवंबर शाम 6:42 बजे संपन्न होगा। यह इस मेले का महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें डेढ़ किमी की परिधि में लाखों श्रद्धालुओं का जमावड़ा होता है।