पंचांग के अनुसार अश्विन माह की शुरुआत से कार्तिक महीने के अंत तक शरद ऋतु रहती है। इस ऋतु में 2 पूर्णिमा पड़ती हैं। इनमें अश्विन माह की पूर्णिमा महत्वपूर्ण मानी गई है, इसे ही शरद पूर्णिमा कहा जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार इस बार शरद पूर्णिमा 30 अक्टूबर को है। इसे कोजागरी पूर्णिमा, जागृति पूर्णिमा या वाल्मीकि पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।
पुष्णामि चौषधी: सर्वा:
सोमो भूत्वा रसात्मक:।।
अर्थ : गीता में भगवान श्री कृष्ण ने शरद पूर्णिमा के चंद्रमा के लिए कहा है कि रसस्वरूप अर्थात् अमृतमय चन्द्रमा होकर सम्पूर्ण औषधियों यानी वनस्पतियों को मैं पुष्ट करता हूं।
इस पूर्णिमा पर चावल और दूध से बनी खीर को चांदी के बर्तन में रात में रखकर सेवन किया जाता है। इससे रोग खत्म हो जाते हैं और रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार चन्द्रमा को औषधि का देवता माना जाता है। इस दिन चांद अपनी 16 कलाओं से पूरा होकर अमृत की वर्षा करता है। मान्यताओं से अलग वैज्ञानिकों ने भी इस पूर्णिमा को खास बताया है।
शरद पूर्णिमा का वैज्ञानिक महत्व
शरद पूर्णिमा को चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है, जिससे चंद्रमा के प्रकाश की किरणें पृथ्वी पर स्वास्थ्य की बौछारें करती हैं। इस दिन चंद्रमा की किरणों में विशेष प्रकार के लवण व विटामिन होते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार दूध में लैक्टिक अम्ल होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और भी आसान हो जाती है।
इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है और इस खीर का सेवन सेहत के लिए महत्वपूर्ण बताया है। इससे पुनरयौवन, शक्ति और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। चांदी के बर्तन में सेवन करने के पीछे भी वैज्ञानिक कारण है। शोध के अनुसार चांदी में प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। इससे विषाणु दूर रहते हैं।