हिंदी एक भाषा नहीं एक संस्कृति है, एक वैचारिक क्रांति है, जो सदियों से अपनी यात्रा के अनंत पड़ावों और मोड़ों से होती हुई, एक ऐसी गंगा में परिवर्तित हो गई है, जिसका भाव तन के मैल से मुक्ति देता है, तो उसके साहित्य का प्रभाव मन के मैल को धोने का काम करता है।
जहां वेद का ज्ञान निहित है संस्कृत को न कहा जाता है, विश्व भारत पर लिखित समानान्तर अपनी हिंदी भाषा है। भारतीय लोकजीवन का प्रतिनिधित्व हिंदी भाषा करती है। भारतीय साहित्य और उसकी सांस्कृतिक संस्थाओं के जरिए ही भारतीय समाज, सभ्यता और संस्कृति का अध्ययन किया जाता है। राष्ट्रभाषा हिंदी का स्वरूप भारत की अस्मिता और पहचान का प्रतीक है। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की मांग की थी। हिंदी ने स्वतंत्रता संग्राम में राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने का कार्य किया। यह भाषा जनमानस में उत्साह, जोश और क्रांति की भावना जगाती रही।
आज के वैश्वीकरण के दौर में हिंदी अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए निरंतर संघर्षरत है। दुनियाभर में हिंदी के प्रति लोगों की रुचि बढ़ी है। हिंदी सिनेमा, साहित्य और सोशल मीडिया ने इसकी लोकप्रियता को और बढ़ाया है।
समूह सामाजशास्त्र के पंडित भी, भाषाविज्ञान के विशेषज्ञ भी मानते हैं कि हिंदी के विकास व प्रचार-प्रसार के लिए माध्यमिक स्तर से सुनिश्चित प्रयास होने चाहिए। आज की परिस्थितियों में यह कि माध्यमिक स्तर से नई पीढ़ी को हिंदी के प्रति जागरूक और संस्कारित करना होगा। हिंदी भाषा साहित्य का प्रभाव जनमानस पर गहरा पड़ता है।
आज के समय में हिंदी अपने वैश्विक सरोकारों को लेकर आगे बढ़ रही है। संयुक्त राष्ट्र ने हिंदी को मान्यता दी है। अमेरिका, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन, कनाडा, मॉरीशस, त्रिनिदाद, फीजी, सूरीनाम आदि देशों में भी हिंदी पढ़ाई जा रही है। प्रवासी भारतीय समुदाय इसमें शोध कार्य कर रहा है।
भाषायी परिदृश्य
विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में हिंदी का स्थान तीसरा है। चीनी भाषा और अंग्रेजी के बाद हिंदी का प्रयोग 69 करोड़ लोग करते हैं। यह विश्व की सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली भाषाओं में से एक है। विश्व पटल पर हिंदी का महत्व बढ़ाने के लिए भारत सरकार द्वारा अनेक प्रयास किए गए हैं।
विदेशों में भारतीय सांस्कृतिक केंद्र खोले गए हैं। इन केंद्रों में हिंदी की कक्षाएं चलती हैं। इंटरनेट और सूचना प्रौद्योगिकी ने हिंदी के प्रचार-प्रसार को और गति दी है। हिंदी समाचार पत्र, पत्रिकाएं, टीवी चैनल और फिल्में विश्वभर में लोकप्रिय हो रही हैं।
संयुक्त राष्ट्र में हिंदी भाषा में कार्यक्रम प्रसारित किए जा रहे हैं। भारतीय दूतावासों में हिंदी को बढ़ावा देने के लिए सांस्कृतिक आयोजन होते हैं। भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने भी हिंदी शिक्षण योजनाएं शुरू की हैं।
विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों में हिंदी पर शोध प्रबंध लिखे जा रहे हैं। लगभग 900 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है। 2012 तक हिंदी के पाठ्यक्रम चलाने वाले संस्थान 2950 तक पहुँच चुके थे।
विश्व पटल पर हिंदी के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए हमें इसकी गरिमा और महत्व को बनाए रखना चाहिए। हिंदी भाषा हमें अपनी जड़ों से जोड़े रखती है और हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संजोए रखने का कार्य करती है।
:- परमप्रज्ञ प्रोफेसर पुष्पेंद्र कुमार आर्यम जी