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पहली और अत्यंत फलदायी है उत्पन्ना एकादशी, जानिये क्या है कथा ?

15 नवंबर को एकादशी है । हर हिंदी महीने में 2 एकादशी आती हैं। एक कृष्ण पक्ष में तो दूसरी शुक्ल पक्ष में । इस प्रकार पूरे वर्ष में कुल 24 एकादशी आती हैं और इनमें से पहली है उत्पन्ना एकादशी । क्यों है यह पहली, कौन है एकादशी और क्या है  एकादशी की कथा ? आइये विस्तार से जानते हैं । सबसे पहले जानते हैं उत्पन्ना की कथा ।   

 

उत्पन्ना एकादशी की कथा

पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार मान्यता है की इसी दिन एकादशी माता उत्पन्न हुईं थीं। कथा के अनुसार, एक समय सतयुग में मुर नामक एक अत्यंत क्रूर राक्षस था। उसने अपनी शक्ति से देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर अपना अधिकार कर लिया । उससे परेशान होकर सभी देवता भगवान शिव के पास गए और तब शिव जी ने सभी को भगवान विष्णु के पास जाने को कहा। देवताओं की विनती सुनकर भगवान विष्णु ने मुर राक्षस से कई वर्षों तक भीषण युद्ध किया। भगवान जानते थे की मुर राक्षस का अंत एक स्त्री द्वारा ही होगा और विधि के विधान के अनुसार उसके अंत का समय अभी नहीं आया है, इसलिए उसे भ्रमित करने के लिए भगवान विष्णु विश्राम करने के लिए उत्तराखंड में स्थित हिमालय की एक गुफा बद्रिका आश्रम चले गए और योगनिद्रा में लीन हो गए। राक्षस मुर भगवान को ढूंढता रहा । फिर एक दिन उसके गुप्तचरों ने विष्णु जी का पता लगा लिया और दैत्यराज मुर को बता दिया। राक्षस मुर ने भगवान विष्णु को सोते हुए देखकर उन पर आक्रमण करने का प्रयास किया। तभी भगवान विष्णु के शरीर के तेज से एक दिव्य, ओजस्वी और तेजस्वी कन्या उत्पन्न हुई। इस कन्या ने अपनी अपार शक्ति से राक्षस मुर को ललकारा और उससे युद्ध किया। अपनी शक्ति से उस कन्या ने मुर का सिर धड़ से अलग कर दिया। जब भगवान विष्णु की निद्रा टूटी, तो उन्होंने मुर को मृत पाया और उस कन्या के पराक्रम से अत्यंत प्रसन्न हुए।

 

भगवान विष्णु ने उस कन्या को वरदान दिया कि तुम मेरे शरीर से मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन उत्पन्न हुई हो, इसलिए तुम्हारा नाम 'एकादशी' ही होगा। तुम हर माह के दोनों पक्षों अर्थात शुक्ल व कृष्ण पक्ष की स्वामिनी होगी। इस प्रकार तुम वर्ष की 24 एकादशी के नाम से विख्यात होगी। मेरे ही भक्त तुम्हारे भी भक्त होंगे। जो भी मनुष्य एकादशी व्रत करेगा उसको जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्ति की प्राप्ति होगी। मृत्यु शय्या पर पड़े प्राणी मात्र की तुम्हारे नाम मात्र के स्मरण से मुक्ति हो जाएगी। यही कारण है कि मार्गशीर्ष माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है, क्योंकि इसी दिन देवी एकादशी का जन्म हुआ था। यह सभी 24 एकादशियों  में सबसे पहली और महत्वपूर्ण मानी जाती है।

 

एकादशी व्रत का महात्म्

हिंदू धर्म में एकादशी तिथि को अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण माना गया है। सभी तिथियों में एकादशी को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है । साथ ही सभी व्रतों में एकादशी व्रत सबसे उत्तम व्रत माना जाता है। इस दिन विशेष तौर पर चावल का परित्याग करना चाहिए और अपनी सामर्थ्य अनुसार दान-पुण्य आदि करना चाहिए।  पुराणों में दशमी युक्त अर्थात दशमी तिथि से लगती हुई एकादशी का नियम, पालन और व्रत निषेध माना गया है। इसलिए द्वादशी युक्त एकादशी का पालन करना ही फलदायी बताया गया है।

 

इस दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा और व्रत रखने से व्यक्ति को शुभ फलों की प्राप्ति होती है। साथ ही, जीवन के समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दिन विधिवत पूजन और व्रत करने से अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह व्रत न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी लाभकारी है, क्योंकि व्रत करने से शरीर से विषैले तत्व बाहर निकलते हैं और मानसिक एकाग्रता बढ़ती है। एकादशी के दिन विष्णु सहस्रनाम का पाठ, भगवान विष्णु की कथाएँ और गीता का पाठ विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है।

 

:- रमन शर्मा

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पहली और अत्यंत फलदायी है उत्पन्ना एकादशी, जानिये क्या है कथा ?

15 नवंबर को एकादशी है । हर हिंदी महीने में 2 एकादशी आती हैं। एक कृष्ण पक्ष में तो दूसरी शुक्ल पक्ष में । इस प्रकार पूरे वर्ष में कुल 24 एकादशी आती हैं और इनमें से पहली है उत्पन्ना एकादशी । क्यों है यह पहली, कौन है एकादशी और क्या है  एकादशी की कथा ? आइये विस्तार से जानते हैं । सबसे पहले जानते हैं उत्पन्ना की कथा ।   

 

उत्पन्ना एकादशी की कथा

पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार मान्यता है की इसी दिन एकादशी माता उत्पन्न हुईं थीं। कथा के अनुसार, एक समय सतयुग में मुर नामक एक अत्यंत क्रूर राक्षस था। उसने अपनी शक्ति से देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर अपना अधिकार कर लिया । उससे परेशान होकर सभी देवता भगवान शिव के पास गए और तब शिव जी ने सभी को भगवान विष्णु के पास जाने को कहा। देवताओं की विनती सुनकर भगवान विष्णु ने मुर राक्षस से कई वर्षों तक भीषण युद्ध किया। भगवान जानते थे की मुर राक्षस का अंत एक स्त्री द्वारा ही होगा और विधि के विधान के अनुसार उसके अंत का समय अभी नहीं आया है, इसलिए उसे भ्रमित करने के लिए भगवान विष्णु विश्राम करने के लिए उत्तराखंड में स्थित हिमालय की एक गुफा बद्रिका आश्रम चले गए और योगनिद्रा में लीन हो गए। राक्षस मुर भगवान को ढूंढता रहा । फिर एक दिन उसके गुप्तचरों ने विष्णु जी का पता लगा लिया और दैत्यराज मुर को बता दिया। राक्षस मुर ने भगवान विष्णु को सोते हुए देखकर उन पर आक्रमण करने का प्रयास किया। तभी भगवान विष्णु के शरीर के तेज से एक दिव्य, ओजस्वी और तेजस्वी कन्या उत्पन्न हुई। इस कन्या ने अपनी अपार शक्ति से राक्षस मुर को ललकारा और उससे युद्ध किया। अपनी शक्ति से उस कन्या ने मुर का सिर धड़ से अलग कर दिया। जब भगवान विष्णु की निद्रा टूटी, तो उन्होंने मुर को मृत पाया और उस कन्या के पराक्रम से अत्यंत प्रसन्न हुए।

 

भगवान विष्णु ने उस कन्या को वरदान दिया कि तुम मेरे शरीर से मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन उत्पन्न हुई हो, इसलिए तुम्हारा नाम 'एकादशी' ही होगा। तुम हर माह के दोनों पक्षों अर्थात शुक्ल व कृष्ण पक्ष की स्वामिनी होगी। इस प्रकार तुम वर्ष की 24 एकादशी के नाम से विख्यात होगी। मेरे ही भक्त तुम्हारे भी भक्त होंगे। जो भी मनुष्य एकादशी व्रत करेगा उसको जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्ति की प्राप्ति होगी। मृत्यु शय्या पर पड़े प्राणी मात्र की तुम्हारे नाम मात्र के स्मरण से मुक्ति हो जाएगी। यही कारण है कि मार्गशीर्ष माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है, क्योंकि इसी दिन देवी एकादशी का जन्म हुआ था। यह सभी 24 एकादशियों  में सबसे पहली और महत्वपूर्ण मानी जाती है।

 

एकादशी व्रत का महात्म्

हिंदू धर्म में एकादशी तिथि को अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण माना गया है। सभी तिथियों में एकादशी को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है । साथ ही सभी व्रतों में एकादशी व्रत सबसे उत्तम व्रत माना जाता है। इस दिन विशेष तौर पर चावल का परित्याग करना चाहिए और अपनी सामर्थ्य अनुसार दान-पुण्य आदि करना चाहिए।  पुराणों में दशमी युक्त अर्थात दशमी तिथि से लगती हुई एकादशी का नियम, पालन और व्रत निषेध माना गया है। इसलिए द्वादशी युक्त एकादशी का पालन करना ही फलदायी बताया गया है।

 

इस दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा और व्रत रखने से व्यक्ति को शुभ फलों की प्राप्ति होती है। साथ ही, जीवन के समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दिन विधिवत पूजन और व्रत करने से अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह व्रत न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी लाभकारी है, क्योंकि व्रत करने से शरीर से विषैले तत्व बाहर निकलते हैं और मानसिक एकाग्रता बढ़ती है। एकादशी के दिन विष्णु सहस्रनाम का पाठ, भगवान विष्णु की कथाएँ और गीता का पाठ विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है।

 

:- रमन शर्मा