आ रही है मासिक शिवरात्रि, क्या है व्रत और निशिता काल में पूजन का महत्व ?
यूं तो प्रचलित तौर पर फाल्गुन माह में महाशिवरात्रि साल में एक बार मनाई जाती है लेकिन हर हिंदी महीने में भी एक शिवरात्रि आती है जिसे कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस बार यह शुभ अवसर 17 नवंबर (सोमवार) को है। आइये जानते हैं मासिक शिवरात्रि कितनी अहम है और क्या है पूजा-अनुष्ठान का विवरण।
शिवरात्रि शिव और शक्ति के मिलन का विशेष पर्व है जो आंतरिक और बाह्य ऊर्जाओं के संतुलन का प्रतीक है।। हिंदू धार्मिक परंपरा में मासिक शिवरात्रि का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से शांति, मनोकामना पूर्ति, पापों का नाश और आध्यात्मिक चेतना में वृद्धि होती है। यह व्रत मानसिक शांति, वैवाहिक जीवन में सामंजस्य और समृद्धि चाहने वालों के लिए विशेष रूप से लाभकारी है।
भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन मध्य रात्रि में भगवान शिवलिंग के रूप में प्रकट हुये थे। सर्वप्रथम शिवलिंग की पूजा भगवान विष्णु एवं ब्रह्माजी द्वारा की गई थी, इसीलिये महाशिवरात्रि को भगवान शिव के प्राकट्य के रूप में जाना जाता है। श्रद्धालुगण शिवरात्रि के दिन शिवलिंग की पूजा-अर्चना करते हैं।
व्रत की महिमा -
शिवरात्रि व्रत प्राचीन काल से ही लोक आस्था का विषय रहा है। पौराणिक ग्रंथों में शिवरात्रि व्रत का उल्लेख मिलता हैं जिसके अनुसार देवी लक्ष्मी, इन्द्राणी, सरस्वती, गायत्री, सावित्री, सीता, पार्वती तथा रति ने भी शिवरात्रि का व्रत किया था। जो श्रद्धालु मासिक शिवरात्रि का व्रत करना चाहते है, वह इसे महाशिवरात्रि से आरम्भ करके एक वर्ष तक निरन्तर कर सकते हैं। मान्यताओं के अनुसार मासिक शिवरात्रि के व्रत को करने से भगवान शिव की कृपा द्वारा किसी भी प्रकार के कठिन एवं असम्भव कार्य को पूर्ण किया जा सकता है।
अविवाहित स्त्रियाँ इस व्रत को विवाह की कामना से एवं विवाहित स्त्रियाँ अपने विवाहित जीवन में सुख एवं शान्ति हेतु इस व्रत का पालन करती हैं। ऐसा माना जाता है कि जो लोग इस व्रत को सच्चे मन से करते हैं, उन्हें महान यज्ञों और तीर्थयात्राओं के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। इस दिन कई भक्त पूरे दिन अन्न और जल त्यागकर कठोर उपवास (निर्जला) रखते हैं। कुछ लोग स्वास्थ्य के अनुसार फल और दूध का उपवास भी रख सकते हैं। मासिक शिवरात्रि यदि सोमवार और मंगलवार के दिन पड़ती है तो वह अत्यधिक शुभ होती है।
निशिता काल में पूजा
चूंकि यह शिव को समर्पित रात्रि होती है इसलिए श्रद्धालुओं को रात्रि के समय जागरण करते हुए मध्य रात्रि में भगवान शिव की पूजा करनी चाहिये, जब रात और दिन मिल रहे होते हैं। मध्य रात्रि को निशिता काल कहा जाता है । इसकी अवधि एक घंटे से भी कम की होती है। पंचांग के अनुसार इसे रात का आठवां मुहूर्त कहा जाता है जो कि ज्योतिषीय गणनाओं के बाद निर्धारित किया जाता है। इस पवित्र काल में पूजा करने पर शांत वातावरण में सभी शक्तियां शीघ्र प्रसन्न होती हैं । यह समय रुद्राभिषेक, ध्यान और मंत्र जाप के लिए सबसे शुभ समय माना जाता है।
मंत्र जाप जरूर करें
पूजा के दौरान जप करें। "ओम नमः शिवाय" (108 बार) स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप करें। भक्ति और आंतरिक शांति के लिए शिव चालीसा भी पढ़ें। भक्त ध्यान करते हैं, भजन गाते हैं और शंकर-शिव शक्ति तत्व को याद करते हैं।
आ रही है मासिक शिवरात्रि, क्या है व्रत और निशिता काल में पूजन का महत्व ?
यूं तो प्रचलित तौर पर फाल्गुन माह में महाशिवरात्रि साल में एक बार मनाई जाती है लेकिन हर हिंदी महीने में भी एक शिवरात्रि आती है जिसे कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस बार यह शुभ अवसर 17 नवंबर (सोमवार) को है। आइये जानते हैं मासिक शिवरात्रि कितनी अहम है और क्या है पूजा-अनुष्ठान का विवरण।
शिवरात्रि शिव और शक्ति के मिलन का विशेष पर्व है जो आंतरिक और बाह्य ऊर्जाओं के संतुलन का प्रतीक है।। हिंदू धार्मिक परंपरा में मासिक शिवरात्रि का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से शांति, मनोकामना पूर्ति, पापों का नाश और आध्यात्मिक चेतना में वृद्धि होती है। यह व्रत मानसिक शांति, वैवाहिक जीवन में सामंजस्य और समृद्धि चाहने वालों के लिए विशेष रूप से लाभकारी है।
भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन मध्य रात्रि में भगवान शिवलिंग के रूप में प्रकट हुये थे। सर्वप्रथम शिवलिंग की पूजा भगवान विष्णु एवं ब्रह्माजी द्वारा की गई थी, इसीलिये महाशिवरात्रि को भगवान शिव के प्राकट्य के रूप में जाना जाता है। श्रद्धालुगण शिवरात्रि के दिन शिवलिंग की पूजा-अर्चना करते हैं।
व्रत की महिमा -
शिवरात्रि व्रत प्राचीन काल से ही लोक आस्था का विषय रहा है। पौराणिक ग्रंथों में शिवरात्रि व्रत का उल्लेख मिलता हैं जिसके अनुसार देवी लक्ष्मी, इन्द्राणी, सरस्वती, गायत्री, सावित्री, सीता, पार्वती तथा रति ने भी शिवरात्रि का व्रत किया था। जो श्रद्धालु मासिक शिवरात्रि का व्रत करना चाहते है, वह इसे महाशिवरात्रि से आरम्भ करके एक वर्ष तक निरन्तर कर सकते हैं। मान्यताओं के अनुसार मासिक शिवरात्रि के व्रत को करने से भगवान शिव की कृपा द्वारा किसी भी प्रकार के कठिन एवं असम्भव कार्य को पूर्ण किया जा सकता है।
अविवाहित स्त्रियाँ इस व्रत को विवाह की कामना से एवं विवाहित स्त्रियाँ अपने विवाहित जीवन में सुख एवं शान्ति हेतु इस व्रत का पालन करती हैं। ऐसा माना जाता है कि जो लोग इस व्रत को सच्चे मन से करते हैं, उन्हें महान यज्ञों और तीर्थयात्राओं के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। इस दिन कई भक्त पूरे दिन अन्न और जल त्यागकर कठोर उपवास (निर्जला) रखते हैं। कुछ लोग स्वास्थ्य के अनुसार फल और दूध का उपवास भी रख सकते हैं। मासिक शिवरात्रि यदि सोमवार और मंगलवार के दिन पड़ती है तो वह अत्यधिक शुभ होती है।
निशिता काल में पूजा
चूंकि यह शिव को समर्पित रात्रि होती है इसलिए श्रद्धालुओं को रात्रि के समय जागरण करते हुए मध्य रात्रि में भगवान शिव की पूजा करनी चाहिये, जब रात और दिन मिल रहे होते हैं। मध्य रात्रि को निशिता काल कहा जाता है । इसकी अवधि एक घंटे से भी कम की होती है। पंचांग के अनुसार इसे रात का आठवां मुहूर्त कहा जाता है जो कि ज्योतिषीय गणनाओं के बाद निर्धारित किया जाता है। इस पवित्र काल में पूजा करने पर शांत वातावरण में सभी शक्तियां शीघ्र प्रसन्न होती हैं । यह समय रुद्राभिषेक, ध्यान और मंत्र जाप के लिए सबसे शुभ समय माना जाता है।
मंत्र जाप जरूर करें
पूजा के दौरान जप करें। "ओम नमः शिवाय" (108 बार) स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप करें। भक्ति और आंतरिक शांति के लिए शिव चालीसा भी पढ़ें। भक्त ध्यान करते हैं, भजन गाते हैं और शंकर-शिव शक्ति तत्व को याद करते हैं।