माता वैष्णो देवी की यात्रा कटड़ा में बाण गंगा से शुरू होती है, जो 14 किलोमीटर के खड़े पहाड़ों की लम्बी चढ़ाई है। ऊपर त्रिकूट पर्वत की सुंदर श्रृंखला में एक प्राचीन और स्वयं-भू पवित्र गुफा है जिसमें निरन्तर गंगा की जल धार प्रवाहित होती रहती है और फिर आता है माँ का दर्शनीद्वार। जहां भगवती जगदम्बा देवी त्रिकुटा के नाम से प्रकट हुईं और अपने तीन प्राकृतिक मूल रुप में 5 फिट की पिंडी स्वरुप में विद्यमान हो गईं। ये तीनों पिंडियां संसार की आधार शक्तियां हैं। जिसमें पहली पिंडी ज्ञान, बुद्धि और स्वरों की मूल देवी माता महासरस्वती हैं। दूसरी पिंडी धन, वैभव और ऐश्वर्य की अधिष्ठात्री देवी माता महालक्ष्मी हैं वहीं तीसरी पिंडी बल, ऊर्जा और शक्ति की सामर्थ्यवान माता महाकाली हैं। जिनमें बीच वाली पिंडी ही माता वैष्णोदेवी हैं।
इन्हीं तीनो पिण्डियों में माँ ने अपने साक्षात् स्वरूप के दर्शन पंडित श्रीधर और उनकी पत्नी सुलोश्चना को दिये थे और स्वयं पिंडी स्वरुप हो गईं थीं। यही तीनों अपने एकाकार रूप में शेरावाली माता दुर्गा हैं। इन पिण्डियों के ठीक सामने स्वयंभू रूप से भगवान शिव का त्रिशूल और गुफा में ही शिवलिंग विद्यमान है । कहते हैं, जहां शक्ति का निवास होता है वहीँ शिव का वास होता है। हर दिन आरती के बाद सुबह-शाम इस पवित्र गुफा का पूजन किया जाता है। इस गुफा में ही भैरव नाथ का धड़ आज भी पड़ा हुआ है और शीश माता के भवन से दो किमी ऊपर भैरव घाटी में स्थित है। देवी के वरदान स्वरुप यहाँ भैरव बाबा के दर्शन के बिना माता की यात्रा अधूरी मानी जाती है। मान्यता है कि माता वैष्णो देवी के दरबार में वही भक्त आते हैं जिन्हें स्वयं माँ बुलाना चाहती हैं।