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नवरात्र में क्यों बोए जाते हैं जौ ?

नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना के बाद मिट्टी के एक पात्र में शुद्ध मिट्टी डालकर उसमें जौ के बीज बोए जाते हैं।आइए जानते हैं कि इसका क्या महत्व है? जौ के पात्र को मां भगवती के सामने रखा जाता है और जल डाला जाता है।जौ को पवित्र अन्न माना गया है इसलिए किसी भी पूजा-पाठ अनुष्ठान में इसका उपयोग होता है। जौ को ब्रह्मा का प्रतीक भी माना जाता है क्योंकि ये सृष्टि के निर्माण के समय सबसे पहले उगने वाली फसल थी। जौ यानि खेत्री को मां दुर्गा का ‘शाकुम्बरी’ स्वरूप माना जाता है, साथ ही जवारे को जयंती और अन्नपूर्णा देवी भी माना जाता है जो धन-धान्य की देवी हैं। जौ जितनी तेजी से और अच्छी तरह से अंकुरित होते हैं, उतना ही शुभ होता है।

 

इन नौ दिनों में इनके बढ़ने और इनके रंग से भी कई संकेत मिलते हैं। साथ ही भविष्य में होने वाली फसल की अच्छी उपज के लिए भी ये एक संकेत होता है। जौ का हरे और सफेद रंग में उगना बेहद ही अच्छा होता है। ये जीवन में नई ऊर्जा, उन्नति और शुभता लाता है। जौ बोने की ये प्रथा हमें सीख देती है कि हमेशा अन्न का सम्मान करें। नवरात्रि में बोए गई खेत्री को विजयादशमी पर कान पर रख कर विजय की कामना की जाती है। कुछ अंकुरित जौ को लाल कपड़े में बांधकर तिजोरी या पर्स में रखने से धन लाभ होता है और बच्चों की किताबों में रखने से ज्ञान प्राप्त होता है। बाकी बचे जौ और मिट्टी को किसी गमले या पार्क जैसी जगहों पर डालना चाहिए या इसे आप गाय को भी खिला सकते हैं।